Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur

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Page 174
________________ । १४६ ] निरूपण और कविवंश वर्णन नामक ऐतिहासिक अंश ही उपलब्ध हुआ है-सम्पूर्ण ग्रन्थ काफी बड़ा होना चाहिये और वह प्रतापगढ़ राज्य लाइब्रेरी या कवि के वंशजों के पास होना संभव है। संचेइ गाँव आज भी इनके वंशजों के अधिकार में है। मिश्र बन्धु विनोद पृ० १०५५ में बूंदी के गुलाबसिंह कवि के अनेक प्रन्थों का उल्लेख है जो कि मुंशी देवीप्रसादजी के 'कविरत्नमाला' से लिया गया जान पड़ता है। इनका समय भी हमारे कवि गुलाबसिंह के समकालीन है पर ये दोनों भिन्न-भिन्न कवि प्रतीत होते हैं। (२०) गोपाल लाहोरी ( २९)-इन्होंने मुसाहिबखान के तनुज सिरदारखाँ के पुत्र मिरजाखाँन की आज्ञा से 'रसविलास' ग्रंथ सं० १६४४ के वैसाख सुदि ३ को बनाया, इस ग्रन्थ का केवल अन्तिम पत्र ही हमारे संग्रह में है। अतः सम्पूर्ण प्रति कहीं उपलब्ध हो तो हमें सूचित करने का अनुरोध है । (२१ ) घनश्याम (२३)-प्रति लेखक के अनुसार ये पुरोहित थे। राधाजी के नखशिख वर्णन के अतिरिक्त इनकी अन्य रचना अज्ञात है। ये कवि वल्लभ कुल के वैष्णव थे। सं० १८०५ के कार्तिक शुक्ला बुद्धवार को नखशिख वर्णन की रचना हुई थी। (२२) चतुरदास (२०)-आप अमृतराय भट्ट के शिष्य व जाति के क्षत्रिय थे। चित्रविलास की रचना अपने मित्रों के कथन से सं० १७३६ कार्तिक सुदि ९ लाहौर में आपने गुरु के नाम से की थी। (२३) चिदानंद (१२९)-ये आत्मानुभवी जैन योगी थे। इनका मूल नाम कपूरचंद और साधकावस्था का नाम चिदानंद है । बनारस वाले खरतरगच्छीय यति चुन्नीजी के ये शिष्य थे । आपके प्राप्त ग्रन्थो के नाम इस प्रकार हैं। (१) स्वरोदय सं० १९०७ पालीताना (२) पुद्गल गीता (३) दया छत्तीसी सं. १९०५ का.सु. १ भावनगर (४) प्रश्नोत्तरमाला (५) सवैया वावनी (६) पद बहोतरी (७) फुटकर दोहे आदि श्रापका स्वरोदय ग्रन्थ अपने विषय का अच्छा ग्रन्थ है। आपके पद बड़े ही सुन्दर एवं भावपूर्ण हैं । गम्भीर भावों को दृष्टांत देकर सरलता से समझाने में आप

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