Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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[ ११४ ] कितेहक नागणी के फूल, कणेयर कवल मालति मूल । शोभानगर की अनेक, जटमल कहै केती एक ॥ ५५ ॥
लहानूर सुहावना देख्या होत भनन्द कवि जटमल वर्णन करि होत सुखकन्दा५५ लेखन-सं० १७६५ गेहरसर मध्ये पद्मा ।
प्रति-पत्र ६ (अन्य कृतियों के साथ) जिसमें पहले पन में यह गजल है । कुल पंत्तियाँ ३४ । अक्षर प्रति पंक्ति ६७ । साइज १०॥४४॥ विशेष-अन्य प्रति में पद्य संख्या ६० है।
(अभय जैन ग्रन्थालय) ( २९ ) सांडेरा छन्द । पद्य २५ । अपूर्ण। भादि:
समरत सरसति सामणी गणपति के गही पाय । सुगुण सुगुरू के नाम जप, करत है सुन्द घणाय ॥ १ ॥
छन्द हाटकी साल देश मां सिर देश, अनोपम गुणवंत गोठाण । पस है भल्ला सहिर अवल्ला -साडेरा शुम ठाम ॥ प्रबल प्रतापी दिनकर सरिखो पाले राज प्रमाण । एसौ सारा नगर सवाई परगट पुण्य प्रमाण ॥१॥
अन्त:
पोसाठा परगट विहु, अति शोमित मभिराम | बहुले होल पढे निहां, ज्ञान रसिक हुई ताम ॥ ३ ।।
(प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय ) (३०) सिद्धाचल गजल । पद्य ६९ । यति कल्याण । (सं० १८६४ भा० सु १४) । भादिः
चरण नमुं चक्केसरी, प्रणमुं सद्गुरु पाय । विमाधक गुण वर्णवू, श्री सिद्धगिरि सुप(स) य ॥१॥
गजल छंद हिरणफाल . गुणयंत पाहु के गहगीर, पूरत हरत तन की पीर । भूषण वाव है भल्लीक, पर धन पटा है पल्लीक ॥
संघत अठार चौसक माद सुद चउदसी ठेक । कीनी गजल दौलत हेत, चित में पार भखर समेत ।। १८॥