Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur

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Page 154
________________ [ १२६ ] (३) पत्र २ से ७ । आदि अन्त के पत्र नहीं। (४) पत्र ४ा पंक्ति २१ । अक्षर ६०। साइज १२५ x ५ | सं० १७५१ । ____ उदेई-भक्षित। विशेष-६२ ३ पत्र की अन्त की पंक्ति से कर्ता का नाम नगराज जान पड़ता है। 'नगराज सुगुन लछन अजैराज बूझई सही ॥ ६२ ॥ प्रस्तुत ग्रन्थ में नर लक्षण के पद्य १२१, नारी लक्षण के ६७, कुल १८८ पद्य है । प्रति नं० २ मे आदि के २ पद्य नहीं एवं ३ अन्य कम होने से १८३ पद्य ही हैं। (अभय जैन ग्रन्थालय) (१४) इन्द्रजाल चातुरी नाटकी। सं० १९११ लिखित । आदि अथ इन्द्रजाल लिख्यते । चातुरी भेद विधान में कहो जु तुम से जे सुनियो दे कान रे । अव चातुरी भेद उपदेस बतायो, पति राखो कुछ छाने रे ।। गोप्य सौ गोप्य चातुरी करणी, जाणे नहिं कोय । प्रगट करी बात सब बिगड़ी, कछु न तमासो होय ।। अन्त हरि सरना जो इन्द्रीजीत जो होय, इन्द्रीजीत जो होय के रेणा । गोप्य जो सोई उडण जो जन, १२ के जाणी जुग में जे सारा ।। इति युक्ति सुं रहिके जांणा जु खि सोही । इति इन्द्रजाल चातुरी नाटकी सम्पूर्ण । लेखन-संमत् १९११ मार्गशीपं कृष्ण ७ रविवासरे । प्रति-पत्र २४ । पंक्ति १९ । अक्षर २० । साइज ६॥४८॥ ( अभय जैन ग्रन्थालय ) (१५) इन्द्रजाल ( नाटक चेटक ) आदिअथ तालक लोह हरताल अनुक्रम लिख्यते । नागर बैल का पान के मध्य काथो मासो १ हरताल मासा ३ छाल चाबीजे पीक वासण में थूकता जाय निगलै नहीं।

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