Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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. टीकाअब मैं स्वरोदय विचार कहूँगा आपुनै शरीर मैं जो ग्याप रखा है। स्वरोदय का नाम हंसाचार कहीये जिण हंस चार जाणये ते भूत ,
भविष्यात २, पर्तमान ३, त्रिकाल ज्ञान नाणिये ॥१॥ • अन्त
पीत वर्ण बिन्दु की चमत्कार दीसै तौ सावेर पृथ्वी तस्व घहै है। स्वेत वर्ण बिंदु दीसे तो पानी तत्व वहै है, कृष्ण बिन्दु दीसै तौ पवन तस्व वहै है,रक्त विंदु दोसै तो अमि तस्त्र वहै है । इति स्वरोषय शास्त्री भाषा समाप्त।
दोहानाम स्वरोक्ष्य शास्त्र की, ....... विचित्र । याकी भर्व विचारणा, नीफै करियो मित्र ॥ ५ ॥ संवत् सतरै पनै, भादव को पख सेख । लालचन्द भाषा करी, श्री अखयराज के हेव ।। २ ।। सहज रूप सुन्दर सुगण, कवित्त चासुरी शक्ति। जाकै हिरदै नित वसै, देव सुगुरु की भक्ति ॥ ३ ॥ अखगराजजी अति निपुण, बहु विधि विद्यावत ।
अक्षयराज प्रताप जसु, सदा करो भगवन्त ॥ ४ ॥ लेखनकाल–१९ वी शताब्दी ।। प्रति-पत्र ६ (अंतिम पृष्ठ खाली)। पंक्ति १४ । अक्षर ५० । साइज ८॥x ||
(महिमाभक्ति भंडार) (२९ ) स्वरोदय विचार (गद्य) आदि
अथ स्वरोदयरो विचार लिख्यते ॥ ईश्वरौवाचं ॥ है पारवती ! अब मैं सरोदय को विचार कहूंगा जिस सरोदय से भूत भवक्ष (भविष्य) तथा वर्तमान तीनों काल की खबर पडे फेर आपणे शरीर मे जो कुछ व्यापार होवे है, तिस का नाम हंसाचार कहिये ।।
विशेष प्रस्तुत प्रति २ पत्रों की अंपूर्ण है । १९ वीं शताब्दी की लिखित है। इसी प्रकारअन्य एक अपूर्ण प्रति है, उसमें पाठ भिन्न प्रकार का है ।