Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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[१२९ ) षात कहणी पहली सकल कुं देखीये ऐही ऐसी सकल कहां पड़ी है जैसा घर मै होय तैसी हुक्म करणा प्रथम चोर प्रश्न चोर की बात पूछे चोर किस तरफ गया है।
मन्य
सातमै घर में जैसी सकल होय तैसी और जैती जायगा होय तितरे चोर, चोर सकल १ चोर घर मै आय पड़ी तो आदमी लम्बा खूबसूरत मुसलमान है दादी बढ़ी है कान बडै हैं नाक ऊँचा है जवां साफ है मुह सिर ऊपर तिलसमां की सहि. नांणी है लाल सफेद रंग है इति प्रथम ॥१॥
नेस खारज है तो पाछा देती वखत माड़ा सै दैगा। सावत दाखल है तो उधारा देणा नहि दिया तो जावैगा नेक मुनकलवा होय तो घणा मांगे तो थोड़ा दीजै ॥५२॥
लेखनकाल–१९ वीं शताब्दी ।
प्रति-(१) पत्र १९ । पंक्ति १२-१३ । अक्षर २९ से ३४। साइज पत्र ९ १०४४।। पत्र १० से १९ इंच clix४॥
(अभय जैन ग्रंथालय) (२०) स्वरोदय-चिदानन्द । सं० १९०५ आश्विन शुक्ला १० शुक्रवार । भादि
नमो आदि अरिहंत, देव देवन पतिराया, जास चरण अवलम्व गणाधिप गुण निज पाया। धनुष पंच संत मान, सप्त कर परिमित काया, वृषभ आदि अरु अन्त, मृगाधिप चरण सुहाया । मादि अन्त युत मध्य, जिन चौधीश इम ध्याइये, चिदानन्द तस ध्यान थी, अविचल लीला पाइए ॥१॥
कन्त
कयो एह संक्षेप थी, ग्रन्थ स्वरोदय सार । भाणे गुणे जे जीव कुँ, चिदानन्द सुखकार ।।४५२॥ कृष्ण साड़ी दशमी दिन, शुक्रवार सुखकार । निधि इन्दु सर परणता, चिदानन्द चित पार ॥४५३॥
((प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रंथालय )