Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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. [ १२२ ] ता सेवा मैं मयाजु राम, कृपावंत विया अमिराम । तिनकी दया भई मुझ कार, उपज्यो ज्ञान सही मोही पर ॥ १०॥
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तौते मेघ माल इहु कीनी, जो गुरु के मुख ते सुम लीनी । इसको पढ़े सौ शोभा पावै, सो जग में पंडित कहलावै ।। १८ ॥
रसावल छन्द मुनि शशि घसु को जान महि, संवत ए खत । कातिक सुदि गुरुवार मान पत्र मिति तिथि भाखत ॥ उम्राषाढ नक्षत्र दिवस, मही एक विकीजत । जो घट अक्षर होइ, ताहि कवि सुध करि लीजत ॥ १९ ॥
लीलावती छन्द एक देस जलंधर सोभे सुन्दर नाम दुपा था और कह्यो । शुभ दान पुन्य की ठौर इही है मानों सुर पुर भान रह्यो । पण्डित नर सोभे कषि ते भारी गीत बजत रसयो। ग्रह ग्रह मङ्गलचार जु होवे तामे पुर इक एह घसयो ॥ २० ॥
दोहा सकल रिद्धि करि सोभए, फगवाडा शुम थांम । तहां मेघ कता कर, भाछी विध मन भान ।। २१ ॥ चूहडमल्ल जु चौधरी, फगवारे को राउ । चतुर सैनका सोम हैं, जिष्ट उद्धगण शशि था।। २२ ।।
गीया छन्द कर सर्व छन्द मिलाइ इकठा कही संख्या यास की । द्वात्रिंश अक्षर के हिसाब अठसै अनचासकी। इहु छन्द सत अरू उनीसै कही कवि इहु भास की ।
सजानु संख्या दौड जाने, मेघमाल विलास की ।। २३ ।। लेखनकाल–२० वीं शताब्दी । प्रति-पत्र १७ । पंक्ति १९ । अक्षर ४५ | साइज १०x४॥
(श्री जिनचरित्रसूरि संग्रह) (९) रमल शकुन विचार । फाल फते की। भादिफाल फते की-अरे यार बहुत दिन चिंता की है अब तेरी फिकर चिंता मटेंगी रोजी तेरी फणक होगी, अव तू अचित रहणा । जो कहांई