Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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[ ९८ ] लेखन-अथ सं (व) त १७१६ मिती कातिक वदि ११ सनीसर वार ता० २३ महुरंम सं० १०७० लिखिइतं पठनार्थ फतैहचंद लिखतं भीखा । प्रति-पत्र १४ । पंक्ति १५-१६ । अक्षर १५ । साइन ५||lxani
(अभय जैन ग्रन्थालय) (९) पंवार वंश दर्पण । पद्य ३० । दयालदास सिंढाय । भादि
वीणा धारद कर विमल, भव नारद सुरभाय । हंसारुढ दारद हरो, शारद करो सहाय ॥१॥ धार उजयनी के अधिप, जिनह वीर वर जान । कहूँ सार आचार कृत, वंश पंवार घखान ॥२॥
मन्त
भनल कुंड उत्पन्न कोप सत्रिय पशिष्ट किय । - भरवुद धार उजीय देव मुरथान राज दिया पिंड शत्रुन किष प्रलय, कोम परमार कहाये । पुनि घाराह पुराण गिरा श्रति व्यास जु गाये । जिण कुल अजीत लोभी, सुनस सुभर सिद्ध भवसारो ।
अनकल विरद परियां हना खाटण सुजस खुमाण रो ।२५। । लेखन-इति श्री परमार वंश दर्पण सि (ढा) पच दयालुदास खेतसीयोत गांव कुविये के निवासी ने वनाय संपूर्ण हुआ। ठाकुरा राज श्री अजीतसिहजी खुमाणसिंहोत गांव नारसैर ठाकुरों की आना से बनाया। पंवारों की पीड़िया एक सौ वतीस की उदारता वीरता का वर्णन कीया मिति पोष कृष्ण ३ संवत् १९२१ का (इसके बाद विस्तृत नामावलि है) विशेष—इसमें २५ छप्पय और ५० दोहे हैं।
(भांडारकर रिसर्च इन्स्टीट्यट, पूना, प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय)