Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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___ दोहा सुनहि कथा दुर्जन सजन दुर्जन भवगुन लेह ।
सूकर पायस छाढ कै मुख पृष्टा कुं देहि ॥८६॥ इति श्री प्रेमविलास प्रेमलता की सवरस लता नाम कथा नाहर जटमल कृता संपूणे।
लिपिकाल -संवत् १८०९ रा वर्षे मिती वैशाख वदी ७ दिने गुरु वा सरे श्री मरोट नगर मध्ये चतर्मासी कृते पं० प्र० श्री १०५ श्री सुखहेमजी गणि शिष्य सरूपचन्द्रेण लिपिचक्र शुभं भवतु।
प्रति-(१) पत्र ८ । पं० १६ । अक्षर ५४ । साईज १०॥४५॥ . प्रति-(२) पत्र ११ । पंक्ति १४ से १६ । अक्षर ३५ । साईज १०x४॥।
(अभय जैन ग्रन्थालय) (९) वहलिमां की वार्ताआदि
हो बलिहारी ताजियां जिन्द जाति कही। तुरीया खेटत ताटजमरदा सट मही ।। १ ।। बहलो म उपति जेथी काविल गजनी । पहिली बहिली मसरि जिये पीछे टोट उमत्ति ॥
वात
पांच पैगम्बर उरस से उतरे। वनवास के विषै तपस्या करते थे। सवा पांच मण भांग । पचास मण दूध का । गैव का पेला पक्के । चार पैगम्बर लैटे लैटे दो पहरे उठे।
अम्त- .
ये लखु असवार फोज ले करि कावा गजनी गया। सो वहाँ जाई पातस्याही करी। ये दोनो ही पातसाही जबर हुई । खूब अमल जमाया। वहोत वरस पातस्याही करी । पीछे वीसती कुं गये। जदी पछे कहाणी तमाम हुई ।
दोहा. राणी पला राणी सोर धनी राहिय भाई । घात घणाई ख्याती करी चारण घनी चितरंग ॥ कौड़ी घरस रहसी वातदी कहसी चित मांहे उमंग । साल १३३१ की हुआ बलीम पठाण ।
धारण को चित उमगीयो कही बात वखाण ॥ इती श्री वहलीमां की राहिव साहिव की वाती संपूर्ण हुवी ।