Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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[ ५२ ] तेट पंडित वचन ले, ताको सुणि अधिकार । ज्यों तागौ मणि के विपे, छिन्न करे पैसार ॥ ८ ॥ ऐसी विधि मारग रह्यो, मेरी मति अनुसार । कहूँ चिकित्सा सांभलौ, दोस न देहु लिगार ।। ९ ।। विविध चिकित्सा रोग की, करी सुगम हित आणि । वैद्यविनोद इण नाम धरि, यांमै कीयौ बखाण ॥ १० ॥
अंत
पहिली कीनौ रामविनोद, व्याधि निकंदन करण प्रमोद । वैद्य विनोद इह दूजा कीया, सज्जन देखि खुसी होइ रहीया ।। ६० ।।
कविकुल वर्णन चौपाई।
गरुआ खरतरगछि सिणगार, जाणे जाकुं सकल संसार जिनके साहिब श्री जिनसिंघ, धरा मांहि हुए नरसिध ॥६॥ दिल्लीपति श्री साहि- सलेम, जाकुं मान्यो बहु धरि प्रेम । बहु विद्या जिनकुं दिखलाय, दयावान कीने पतिसाहि ॥६५|| शिष्य भले जिनके सुखकार, पदमकीरति गुण के भंडार ।। ताके शिष्य महा सुखदाई, सकल लोक में सोभ सवाई । ६६॥ वाचनाचार्य श्री पदमरंग, बहु विद्या जाने उछरंग। चिर जीवौ धू रवि चंद, देख्यां उपजै अतिहि आणंद । ६७॥ रामचंद अपणी मतिसार, वैद्य विनोद कीनो सुखकार । पर उपगार कारण के लई, भाषा सुगम जो मह करि दई ॥६८॥ रस६ ग सागर शशि' भयो, रित वसंत वैसाख । पूरणिमा शुभ तिथि भली, प्रन्थ समाप्ति इह भाख ।।६६॥ साहिन साहिपति राजतौ, औरंगजेब
नरिंद। तास राज में ए रच्यो, भलो ग्रन्थ सुखकंद ।।७०॥ गठनायक है दीपता, श्री जिनचंद राजान । सोभागी सिर सेहरी, वंदे सकल जिहांन ॥७१।। मरोट कोट शुभ थान है, वशे लोक सुखकार । ए रचना तिहां किन रची, सबही कुं हितकार ॥७२॥ पर उपगारी ग्रंथ है, सकल जीव सुखकार ।
थिर रहिज्यौ जां लगि सदा, तां लगि धू इकतार ॥७३।। इति श्री वणारस पद्मरंग गणि शिष्य रामचंद विरचिते श्री वैद्यविनोदे नेत्र प्रसादन कल्प नामाध्याय । इति श्री वैद्य विनोद संपूर्ण । ग्रन्थ संख्या ३७०० ।