Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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[ ७० ] (२) प्रबोधचन्द्रोदय नाटक आदि-अथ प्रबोधचन्द्र नाटक लिख्यते ।
कवित्त
जैसे मृग सृष्णा विपं जल की प्रतीति होत,
रूपै की प्रतीति जैसे सीप विष होत है। जैसे जाके बिनु जाने जगत सत जानियत
विश्व सब तोत है। ऐसें जो अखंड ज्ञान पूर्ण प्रकाशवान,
नित्त समसत्त सुध मानन्द उद्योत है। ताही परमातमा की करत उपासना हैं,
निसन्देह जान्यो याकी चेतनाही जोत हैं ।।१।। ऐसे मंगल पाठ करी सूत्रधार अपनी नटी बुलाई यहां आज्ञा दीजे । । सूत्रधार बोल्यो। अन्तविशेष-प्रति के केवल तीन पत्र होने से अंत का भाग नहीं मिला, तथा कर्ता का नाम भी ज्ञात नहीं हो सका। प्रति--पत्र ३ । अपूर्ण । पंक्ति २४ । अक्षर ६२ । साईज ९" x ४" ।
(अभय जैन ग्रन्थालय) (३) हनुमान नाटक । जगजीवन । आदिश्रीमज्जगजीवन कवे आत्म विनोदार्थ हनुमान्नाम्ना नाटक पर(?)यतुं समुद्यतः ।
कहे प्रिया कविराज कहि रामायन की बात ।
नाटक श्री हनुमान को नचौ अंक द्वे सात ।। अन्तसातवें अंक का समाप्ति वाक्य
ठठि जानुकि रन स्रवन दे दसआनन गत जोति ।
दुंदभिरि मृभेदंग धुनि ! अंत सख धुनि होति ॥ २९ ॥ इति श्री जगज्जीवन कृते महानाटके रावननिदहनो नाम सप्तम अंकः । इसके बाद आठवे अंक के ५४ वे पद्य तक है। बाद के पत्रे नहीं हैं। प्रति--पृष्ट ७२ । पंक्ति १८ । अक्षर १२ । साईज ६" x ९।।"।
(अनूप संस्कृत लायब्रेरी)