Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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[ ४४ । लेखन-१८ वीं शताब्दी । प्रति-पत्र ९८, कवि की अन्य कृतियो के साथ
(वड़ा ज्ञान भंडार) (८) नाडी परीक्षा, मान परिमाण । पद्य ४५+१३ । रामचंद्र । आदि
सुभ मति सरसति समरिये, शुद्ध चित्त हित आण ।
प्रगट परीक्षा जीवनी, लहीयो चतुर सुजाण ॥ १ ॥ अंतसौम्य दृष्टि सुप्रसन्न सदाई भालीय, प्रकृति चित्त इहु दुख सहू ही रालीयै । शीघ्र शांति होइ रोग सदा सुख संदही, नाडि परीक्षा एह कही रामचंदही ॥ ४५ ॥
आगे मान परिमाण के १३ इस प्रकार कुल ५८ पद्य है। हमारे संग्रह मे सं० १७६१ की लिखित रामविनोद की प्रति पत्र ४७ के शेष मे है।
विशेष-रामविनोद की किसी किसी प्रति मे मान परिमाण के इन पद्यो को उसी मे सम्मिलित कर दिया है।
(अभय जैन ग्रन्थालय) (९) निजोपाय । पद्य ९६ । आदि
दोहा प्रथ ग्रन्थ निजोपाय लिख्यते । दोहा । आदि सुमरु अलख, दोम महंमद नाम । ठनही को कलमां कहूँ, नसदिन आई जांम ॥ १ ॥ मानस रोगी कारण, ओषद रची अपार । सीत गरम पुनि रक्त हुँ, दीनो भेद विचार ॥ २ ॥ चार तस्व पैदा किया, आदम के तन मांहि ।।
खाक अग्नि पाणी पवन, सब से मैं परिछांई ॥ ३ ॥ अंतइलाज नेत्रांजन का
एक पीपा अर आवरे, दार चीणी से आंनि । महलोठी मिश्री जु संग, सब ही पीस समान ॥ ९५ ॥ जल सौं गोली बांधिए, गुंजा के प्रमान । भनन करि है नैन कुं, सकल दोष होइ हानि ॥ ६ ॥