Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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[ ४१ ] कीयो ग्रंथ लाहोर मई, उपजी बुद्धि की वृद्धि ।
जो नर राखे कंठ मइ, सो होवै परसिद्ध ।। १३ ॥ अंत (प्रथम खंड)
गुनपानी अरु क्वाथ क्रम, कहे जु भाद के खंड ।
खरतर गच्छ मुनि मानजी, कीयो प्रगट रह मड ॥ २६५ ॥ इति श्री ख० मानजी, विरचितायां वैद्यक भाषा कविविनोद नाम प्रथम खंड समाप्तं । अंत-(द्वितीय खंड)
द्वितीय खंड ज्वर की कथा, कही सुगम मति मान । समझ परै सब ग्रंथ की, पढ़े सु पंडित जान ।। २७७ ।। खरतर गच्छ साखा प्रगट, वाचक सुमति सुमेर । ताको शिष्य मुनि मानजी, कीनी भाषा फेर ॥ २७८ ।। संस्कृत शब्द न पदि सके, अरु अच्छर से हीन ।
ताके कारण सुगम ए, तातै भाषा कीन ॥ २७६ ।। इति ख० मुनि मानजी विरचितायां ज्वर निदान, ज्वर चिकित्सा, सन्निपात तेरह निदान चिकित्सा नाम द्वितीय खंड ।
लेखन-१८ वीं शताब्दी प्रति १-पत्र १४ उपरोक्त दो खंड मात्र ( जयचन्द्रजी भंडार बस्ता नं० ४१) २-पत्र ४२
(
बस्ता नं० १०) ३-पत्र ४५ । पंक्ति १३ । अक्षर ३८ । साइज १०॥४४॥।
(नकोदर भंडार पंजाब) (४) कालज्ञान । पद्य १७८ । लक्ष्मीवल्लभ । सं० १७४१ श्रावण शुक्ल १५ । आदि
सकति शंभु शंभू-सुतन, धरि तीनों को ध्यान । सुदर भाषा बंध करि, करिहुं काल ग्यांन ॥ १ ॥ भाषित शंभुनाथ को, जानत काल ग्यान । जाने आउ छ मास थे, धुर ते वैद्य सुजान ।। २॥
जग वैद्यक विद्या जिसी, नहीं न विद्या और । फलदायक परतखि प्रगट, सब विद्या को मौर ॥६५॥
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