Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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[ २९ ] रामकृष्ण को पौत्र है, हृदयराम कवि मित्र । उद्धव पुत्र प्रयाग द्विज, दीक्षित को दौहित्र ।। १५ ।। रामकृष्ण को पुत्र मणि, माधवराम सुजान । साहि सुजा की चाकरी, करी बहुत दिन मान ।। १६ ॥ नंदन माधवराम को, हृदयराम अभिराम । नवरस को वर्णन करे, यथा सुमति संदाम ॥ १७ ।।
संमत सत्तरैसे वरस, बीते अरु एकतीस । माधव सुदि तिथि पंचमि, वार बरनि वागीस ॥ २१ ॥ भानुदत्त कृन संस्कृत, रसतरगिणी भाइ ।
रसिक घृद के पदन कौं, पोथी करी बनाइ ॥ २२ ।। अंत
ज्यों समुद्र मथि देवतनि, पाये रतन अमोल । त्योंही नवरस रतन लही, मथि तेरह कल्लोल ॥ २७ ॥ रसरत्नाकर ग्रन्थ यह, पढ़े जु नर मन लाइ । ताको ह्वे हैं हृदय मैं, नव रस ज्ञान बनाइ ॥ २८ ॥ करि प्रनाम कछु करत हों, विनती बुध सौं लेखि।
जहे असुद्ध तह शोधियो, सहृदय बुद्धि विशेखि ॥ २१ ।। इति श्री मिश्र माधवरामात्मज श्री मिश्र हृदयराम विरचिते रस रत्नाकरे, रसालंकारे, रसाभिव्यक्ति वर्णनम् नाम द्वादश कल्लोलः समाप्तः ।
लेखन-सं० १७४८ वर्षे कुंवार शुक्ल पक्षे ५. शुभमस्तु ग्रन्थ संख्या १८८० प्रति-गुटकाकार । पत्र ७५ । पंक्ति २० । अक्षर १८ । साइज ७ x ९
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (२१) रस विलास । गोपाल (लाहोरी ) सं० १६४४ वैशाख शुक्ला ३ ।
मिरजाखांन के लिये। आदिप्रस्तुत ग्रन्थ का केवल अंतिम पद्य ही प्राप्त है अत. आदि के पद्य नही दिये जा सके। अंत
रुकुमनी लछनि रूप गुनही, को कवि कहे निवाहि । मे जान तेही कहे, गोविद रानी आदि ॥ ४१ ॥