Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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लेखनकाल–१८ वी शताब्दी। प्रति-पत्र ७१ । पंक्ति ९ से १० । अक्षर २४ से २८ । साइज़ १०+५ विशेष-कर्ण भूपति रचित कृष्णचरित्र पर गद्य मे टीका है । ग्रन्थ मे अहं. कारो का वर्णन है।
(अनूप संस्कृत-पुस्तकालय) (८) चित्रविलास । पद्य १३१ । अमृतराइ भट्ट शिष्य चतुर्भुदासजी । सं० १७३६ का० शुक्ला ९ । लाहोर ।
आदि
छापय छंद सुंडा दंड भसूढ मंड, सिंदूर भूरवर । केसर गुड अलि झुंड लसै, शशि खंड भाल पर । मुकट चंड सुचंड गंड, मद झरन चलतच्चै । कुंडल करल अखंड चढ़े, जनु मारतंड द्वै। भुज दंडन नुर वल कंड अति, नवो खंड चंदत चरन । कटक विहंड सत खंड कर, लंबोदर संकट हरन ।। १ ।।
वानी पे वर पाइ के, पुन भाषा गुरु सब विध चतुर, जै
बदौ सिरनाइ । श्री अमृतराइ ॥ ३ ॥
बैठे हैं वहु मित्र मिल, कवि अमृत के धाम । तिन सबहिन मिल यों कहयो, रच्यो ग्रन्थ अभिराम ॥ ५ ॥
कुंडलिया
पंडित बड़े लाहोर में, अंत गुनन को नाहि । कछु ऐसी विध कीजिये, ज्यों सब मोहे जाहि । ज्यों सब मोहे जाहि, ग्रन्थ रचिये अति रुचकर । आगे भयो न होइ, और भाषा में सरवर । हो तुम चतुर सुजान, सबै विद्या गुनमंडित । की वहै उपाय, जाहि सुन रोझत पंडित ।। ६ ॥