Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
View full book text
________________
[ २३ ] (११) दूलह विनोद । दूलह ? आदिअथ दूलह विनोद लिख्यते
दोहरा अलख अमूरति अगम गति, कहत न जीभ समाय । अद्भुत अवगति जाह की, सो क्यों बरनी जाहि ॥ १ ॥
आदि जन्म सब एक है, अरु फुनि अंतहु एक । बौरें ते जग कहतु है, हिदू तुरक विवेक ॥ ६ ॥
मोहन रूप अनुप सि मूरति, भुप बलि विधि रूप सुधारो। तेग बली अरु त्याग बलि, अरु भाग्य बलि सिरताज संवारो। साहि सुजान विहान को भांन, जिहांन जान ओ नैननि तारो । साहिब आलम साहिन साहि, महम्मद साहि सुजा जगि प्यारो ॥१॥
अंत-अप्राप्त केवल प्रथम पत्र ही प्राप्त है। प्रति-पंक्ति १२ । अक्षर ३२ । साइज़ ९x४
(अभय जैन ग्रन्थालय) (१२) नखसिख । पद्य ६३ । घनश्याम । सं० १८०५ काती सुदी बुधवार
आदिअथ राधाजी को नखसिख वर्णनं लिख्यते । पुरोहित घनश्याम कृत ।
कवित्त छप्पय श्री वल्लभ नित समर, करत मति निरमल लायक । विट्टलेस प्रभु समर, सरन गत सदा सहायक । गोवद्धन धुर सुमिर, सकल ब्रज जुवती नायक । निज गुरु गिरिधर सुमिर, सदा मंगल बुधदायक । इन चरनन को अनुसरहु, हरदासन की हुवै सरन । राधा अदभुत् रूप तिहां, घनश्याम नखसिख वरन ॥ १ ॥
अंत
अष्टादश शत . पंचए, संवत् कातिक मास । सुकल पछि पद बुध दिवस, नख सिख भयो प्रकास ॥ ६१ ।।