Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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[१०] इति श्री सत्यासी छंद समाप्त। पूज्य पुरंदर युग प्रधान श्री श्री कल्याणसागर सूरीश्वर विजयराज्ये शिष्य कवि श्री हेमसागर गणि कृते छदमालिका संपूर्ण ।
लेखनकाल-१८ वीं शताब्दी । प्रनि-१. छतीबाई उपाश्रय के संग्रह में, (प्रतिलिपि, अभयजन ग्रन्थालयमे )।
२. हरिसागर सूरि भंडार । पत्र १३, संवत् १७०७ लि० छंद ८५-२०७
३. जैसलमेर भंडार (२) छंदसार । पद्य २६७ । सृरत मिश्र । आदि अथ छंदसार लिख्यते--
सोरठा कृष्ण चरन चित आन, कहूँ सुमत पिगल कछु । जिहि त छंद हि जान, प्रभु गुन तामैं वरनिये ॥ ५ ॥
___ चौपाई प्रथमहि संख्या कम बताय, प्रस्तारहि सूची चितलाथ । पुन वहिष्ट नष्ट सुवखान, मेर पताका सर्कटि जान ॥ २ ॥
दोहा अष्ट कर्म ए मत्त के, पुनवर्तन के जान ।
इहि विधि षोडश कम ए, कहै सुकवि सुखदान ।। ३ ।। अंत-- रसीले रूप ागर विलासी सुख सागर, सुन्यो जू स्याम नागर इतै हूँ नै टरिये । मुवंसी के बजावत छबीली के रिझावन, सुवैइ चित्त भावन सुवेग परि हरिय। श्री वृन्दावन नाइक समस्त इछदायक, सुनै हो श्रवलायक बके सै धीर धरिये। अभंगी मैन मूरत न देखिय महरत, पुकारे द्वार सूरत कृपा की दृष्टि करिये ॥२३॥
छंद बंध जो वरहि तो, छंद बंध चितलाय ।
छद बंधि सब छाड़ के, नंद नंद गुन गाय ।। २२ ।। (१) प्रति-(१) हमारे संग्रह की प्रति अपूर्ण (पत्र १९ से २१ ) है अतः श्रांत का पद्म बृहत ज्ञान भंडार की प्रति से लिखा गया है।
(२) पत्र ३ । पंक्ति ५ । अक्षर २४ । माइज ७||४|| (३) पत्र १२ । पंनि १२ । अक्षर ५० । साइज १०x४||
( महिमाभक्ति-भंडार )