Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ १० रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् भावार्थ-द्रव्यके तीन प्रकारके लक्षण हैं. एक तो द्रव्यका सत्तालक्षण है. दूसरा उत्पादव्ययध्रौव्यसंयुक्तलक्षण है. तीसरा गुणपर्यायश्रित लक्षण है. इन तीनों ही लक्षणोंमें पहिले २ लक्षण सामान्य हैं अगले २ विशेष हैं, सो दिखाया जाता है. जो प्रथम ही सत्लक्षण कहा, वह तो सामन्य कथनकी अपेक्षा द्रव्यका लक्षण जानना । द्रव्य अनेकान्त स्वरूप है. द्रव्यका सर्वथाप्रकार सत्ता ही लक्षण है. इस प्रकार कहनेसे लक्ष्य लक्षणमें भेद नहिं होता. इस कारण द्रव्यका लक्षण उत्पादव्ययध्रौव्य भी जानना । एक वस्तुमें अविरोधी जो क्रमवर्ती पर्याय हैं, उनमें पूर्व भावोंका विनाश होता है, अगले भावोंका उत्पाद होता है, इस प्रकार उत्पादव्ययके होतेहुये भी द्रव्य अपने निजस्वरूपको नहिं छोडता है, वही ध्रौव्य है । ये उत्पादव्ययध्रौव्य ही द्रव्यके लक्षण हैं । ये तीनों भाव सामान्य कथनकी अपेक्षा द्रव्यसे भिन्न नहीं है। विशेष कथनकी अपेक्षा द्रव्यसे भेद दिखाया जाता है । एक ही समयमें ये तीनों भाव होते हैं, द्रव्यके स्वाभाविक लक्षण हैं. उत्पादव्ययध्रौव्य द्रव्यका विशेष लक्षण है. इस प्रकार सर्वथा कहा नहिं जाता, इस कारण गुण पर्याय भी द्रव्यका लक्षण है. कारण कि-द्रव्य अनेकान्तस्वरूप है. अनेकान्त तब ही होता है-जब कि द्रव्य अनन्तगुणपर्याय होंय । इसकारण गुण और पर्याय द्रव्यके स्वरूपको विशेष दिखाते हैं । जो द्रव्यसे सहभूतताकर अविनाशी हैं वे तो गुण हैं, जो क्रमवर्ती करकें विनाशीक हैं ते पर्याय हैं । ये द्रव्योंमें गुण और पर्याय कथंचित् प्रकारसे अभेद हैं और कथंचित्प्रकार भेदलिये हैं. संज्ञादि भेदकर तौ भेद है, वस्तुतः अभेद है। यह जो पहिले ही तीन प्रकार द्रव्यके लक्षण कहे, तिनमेंसे जो एक ही कोई लक्षण कहा जाय तो शेषक दो लक्षण भी उसमें गर्मित हो जाते हैं। यदि द्रव्यका लक्षण सत् कहा जाय तो उत्पादव्यय धौव्य और गुणपर्यायवान् दोनों ही लक्षण गर्मित होते हैं. क्योंकि जो 'सत्' है सो नित्य अनित्यस्वरूप है. नित्य स्वभावमें ध्रौव्यता आती है. अनित्य स्वभावमें उत्पाद और व्यय आता हैं । इस प्रकार उत्पादव्ययध्रौव्य सत्लक्षणके कहनेसे आते हैं और गुणपर्याय लक्षण भी आता है. गुणके कहते ध्रौव्यता आती है और पर्यायके कहते उत्पादव्यय आते हैं । और इसी प्रकार उत्पादव्ययध्रौव्य लक्षण कहनेसे सत्लक्षण आता है. गुणपर्याय लक्षण भी आता है. और गुणपर्यायद्रव्यका लक्षण कहते सत्लक्षण आता है और उत्पादव्ययध्रौव्य लक्षण भी आता है. क्योंकि-द्रव्य नित्य अनित्यस्वरूप है. लक्षण नित्य अनित्य स्वरूपको सूचन करता है. इस कारण इन तीनों ही लक्षणोंमे सामान्य विशेपताकरके तो भेद है. वास्तवमें कुछ भी भेद नहीं है । आगे द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नयोंके भेदकर द्रव्यके लक्षणका भेद दिखाते हैं । उप्पत्तीव विणासो दव्वस्स य णत्थि अस्थि सम्भावो । विगमुप्पादधुवत्तं करंति तस्सेच पज्जायाः ॥ ११ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 157