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41.
अपदेसं सपदेस मुत्तममुत्तं च पज्जयमजादं। पलयं गयं च जाणदि तं णाणमदिदियं भणियं।।
मुत्तममुत्तं
अपदेसं
(अ-पदेस) 2/1 वि प्रदेश-रहित को सपदेसं (स-पदेस) 2/1 वि प्रदेश-सहित को
[(मुत्तं)+ (अमुत्तं)] मुत्तं (मुत्त) 2/1 वि मूर्त को अमुत्तं (अमुत्त) 2/1 वि अमूर्त को अव्यय
और पज्जयमजादं [(पज्जयं)+(अजाद)]
पज्जयं (पज्जाय-पज्जय) 2/1पर्याय को
अजादं (अजा) भूक 2/1 अनुत्पन्न को पलयं (पलय) 2/1 .
विनाश को गयं (गय) भूकृ 2/1 अनि
प्राप्त हुई अव्यय
और जाणदि
(जाण) व 3/1 सक जानता है
(त) 1/1 सवि णाणमदिदियं . . [(णाणं)+(अदिदियं)] णाणं (णाण) 1/1
ज्ञान अदिदियं (अदिदिय) 1/1 वि अतीन्द्रिय भणियं (भण-भणिय) भूक 1/1 कहा गया
च ।
वह
अन्वय- अपदेसं सपदेस मुत्तममुत्तं च पज्जयमजादं पलयं गयं च जाणदि तं णाणमदिदियं भणियं।
- अर्थ- (जो) (ज्ञान) प्रदेश-रहित (कालाणु और परमाणु) को, प्रदेशसहित (जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश) को, मूर्त (पुद्गलों) को और अमूर्त (जीव, धर्म, अधर्म, आकाश और काल) को (तथा) अनुत्पन्न पर्याय को
और विनाश को प्राप्त हुई (पर्याय) को जानता है वह ज्ञान (केवलज्ञान) अतीन्द्रिय कहा गया. (है)।
प्रवचनसार (खण्ड-1)
प्रवचनस
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