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. 56. फासो रसो य गंधो वण्णो सहो य पुग्गला होति।
अक्खाणं ते अक्खा जुगवं ते णेव गेण्हंति।।
फासो
रस
और
.
गंधो
वण्णो
सद्दो
(फास) 1/1 (रस) 1/1 अव्यय (गंध) 1/1 (वण्ण) 1/1 (सद्द) 1/1 अव्यय (पुग्गल) 1/2 (हो) व 3/2 अक (अक्ख) 6/2 (त) 1/2 सवि (अप्प) 1/2 (त) 2/2 सवि .
पुग्गला होंति अक्खाणं
शब्द
और पुद्गल होते हैं इन्द्रियों के
अक्खा
जुगवं
अव्यय
___ इन्द्रियाँ
उनको एक ही साथ नहीं ग्रहण करती हैं
णेव
अव्यय
गेहंति
(गेण्ह) व 3/2 सक
अन्वय- फासो रसो गंधो वण्णो य सद्दो अक्खाणं पुग्गला होंति य ते अक्खा ते जुगवं णेव गेहंति।
अर्थ- स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द- (ये) (सब) इन्द्रियों के (विषय) पुद्गल होते हैं और वे इन्द्रियाँ उन (विषयों) को एक ही समय में ग्रहण नहीं करती हैं।
(68)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
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