Book Title: Pravachansara Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 146
________________ असक्क असब्भूद असुह असेस अहिअ अहिसंबद्ध जुड़ा हुआ इट्ठ वांछित इदर अन्य उब्भव उत्पन्न उवओगप्पग उपयोगात्मक उवदिट्ठ एतिय कत्तार कुसल केवल केवलणाणि केवलि असमर्थ अविद्यमान खाइग घादि घोर चक्कधर अशुभ समस्त अधिक 61, 65 47, 54 78 69 73 34 अद्वितीय 59 करनेवाले 1 कुलिसाउहधर वज्रायुध धारण करनेवाले 73 92 Jain Education International उपयोगस्वभाववाला उपदेश दिया गया कुशल केवल केवलज्ञानी केवली. क्षायिकी घातिया कर्म भयानक चक्र धारण करनेवाले प्रवचनसार (खण्ड-1 ) 40 37,38 9, 12, 46, 72 29 24, 25 89 58,60 2248F R 20 32 45 60, 62 77 73 For Personal & Private Use Only (139) www.jainelibrary.org

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