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अ-सहंत खवयंत
वर्तमान कृदन्त सहन न करते हुए वक विसर्जन करता वकृ अनि हुआ जानता हुआ वकृ अनि रूपान्तरण करता वकृ हुआ
जाणण्ण
परिणममाण
प्रवचनसार (खण्ड-1)
(137) .
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