Book Title: Pravachansara Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 148
________________ 48 तिहवणत्थ दिव्व दुहिद तीन लोक में स्थित दिव्य दुःखी देहि शरीरधारी पच्चक्ख प्रत्यक्ष 21, 38, 86 पर्याय में स्थित/रहनेवाला 10 पज्जयत्थ पत्तेग पदीवयर प्रत्येक प्रकाश करनेवाले पर पार पर 32, 36, 89, 90 58 53, 62 5, 6 21, 40 अन्य परम उत्कृष्ट/सर्वोत्तम परिणद रूपान्तरित पहाण : प्रधान पुव्व युक्त/से युक्त . भव्य मुत्त मूर्त मूढ संशयात्मक रम्म रमणीयं रहित वर ... विचित्त . अनेक प्रकार के वित्थड फैला हुआ 41, 53, 54, 55 63,71 रहिद 59 59, 61 प्रवचनसार (खण्ड-1) (141) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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