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67.
तिमिरहरा
जइ
दिट्ठी
जणस्य'
दीवेण
णत्थि
कायव्वं
तह
सोक्खं
सयमादा
विसया
किं
तत्थ
कुव्वंति'
तिमिरहरा जड़ दिट्ठी जणस्य दीवेण णत्थि कायव्वं । तह सोक्खं सयमादा विसया किं तत्थ कुव्वंति । ।
1.
2.
[ ( तिमिरहर) (स्त्री) तिमिरहरा) अंधकार को
1/1 fa]
हटानेवाली
अव्यय
(faf) 1/1
(जण) 6/1
(दीव) 3 / 1
अव्यय
प्रवचनसार (खण्ड- 1 )
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अव्यय
(सोक्ख) 1 / 1 [(सयं)+(आदा)] सयं (अ) = स्वयं
आदा (आद)
( विसय) 1/2 (क) 2 / 1 सवि
अव्यय
(कुव्व) व 3 / 2 सक
नहीं
( कायव्व) विधि 1 / 1 अनि किया जा सकता
उसी प्रकार
सुख
यदि
देखने की शक्ति
प्राणी की
दीपक से
= आत्मा
अन्वय- जइ जणस्य दिट्ठी तिमिरहरा दीवेण णत्थि कायव्वं तह आदा सयं सोक्खं तत्थ विसया किं कुव्वंति ।
अर्थ- यदि (किसी ) प्राणी में देखने की शक्ति अंधकार को हटानेवाली (है) (तो) दीपक से ( कुछ भी) नहीं किया जा सकता। उसी प्रकार (जब) आत्मा स्वयं (ही) सुख (है) (तो) वहाँ (इन्द्रिय) - विषय क्या ( कार्य ) करेंगे?
स्वयं
आत्मा
विषय
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। ( हेम - प्राकृत - व्याकरणः 3-134 )
प्रश्नवांचक शब्दों के साथ वर्तमानकाल का प्रयोग प्रायः भविष्यत्काल के अर्थ में होता
है।
क्या
वहाँ
करेंगे
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