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69. देवदजदिगुरुपूजासु चेव दाणम्मि वा सुसीलेसु।
उववासादिसु रत्तो सुहोवओगप्पगो अप्पा।।
देवदजदिगुरुपूजासु
चेव दाणम्मि
वा
तथा
सुसीलेसु
उववासादिसु
[(देवद)-(जदि)- देवता, मुनि और (गुरु)-(पूजा) 7/2] गुरु की भक्ति में अव्यय
और (दाण) 7/1
दान में अव्यय (सुसील) 7/2
श्रेष्ठ आचरण में [(उववास)+(आदिसु)] [(उववास)-(आदि) 7/2] . उपवास आदि में (रत्त) भूकृ1/1 अनि अनुरक्त [(सुह)+ (उवओगप्पग)] । [(सुह) वि-(उवओगप्पग) शुभोपयोगात्मक 1/1 वि] (अप्प) 1/1 .
रत्तो सुहोवओगप्पगो
अप्पा
आत्मा
अन्वय- देवदजदिगुरुपूजासु चेव दाणम्मि वा सुसीलेसु उववासादिसु . रत्तो अप्पा सुहोवओगप्पगो।
अर्थ- देवता (अरहंत, सिद्ध), गुरु (आचार्य, उपाध्याय) और मुनि (साधु) की भक्ति में, दान में, श्रेष्ठ आचरण में तथा उपवास आदि में अनुरक्त आत्मा शुभोपयोगात्मक (है)।
प्रवचनसार (खण्ड-1)
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(81)
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