Book Title: Pravachansara Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 139
________________ कृदन्त शब्द अभिभूय उवलब्भ ओगेण्हित्ता किच्चा चत्ता पप्पा पडुच्च भवीय भविय होकर समासेज्ज सुणिदूण णादुं अंतगय अजाद अजाय अट्ट अभिंधुद (132) अर्थ व्याप्त होकर Jain Education International कृदन्त-कोश संबंधक कृदन्त समझ कर अवग्रह करके करके छोड़कर प्राप्त करके अवलम्बन करके उपलब्ध करके सुनकर 1 कृदन्त अनि संकृ अनि संकृ संक्र अनि संकृ अनि अनि संकृ अनि संकृ संकृ अनि संकृ हेत्वर्थक कृदन्त जानने के लिए हेक अत्यधिक रूप पकड़ा गया भूतकालिक कृदन्त अंत को पहुँचा भूक़ अनि हुआ अनुत्पन्न अनुत्पन्न पीड़ित भूक अनि भूक अनि भूक अनि अनि से भूक For Personal & Private Use Only गा.सं. 30 88 55 4,82 79 65,83 50 115 12, 38 62 40, 48 61 41 39 71 12 प्रवचनसार (खण्ड-1) www.jainelibrary.org

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