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90. तम्हा जिणमग्गादो गुणेहिं आदं परं च दव्वेसु।
अभिगच्छदु णिम्मोहं इच्छदि जदि अप्पणो अप्पा।।
तम्हा जिणमग्गादो गुणेहि
आद
परं
दव्वेसु . अभिगच्छदु णिम्मोहं इच्छदि जदि अप्पणो
अव्यय
इसलिये [(जिण)-(मग्ग) 5/1] जिन-मार्ग से (गुण) 3/2
गुणों के साथ (आद) 2/1
आत्मा को . (पर) 2/1 वि
पर को अव्यय
. और .. (दव्व) 7/2
द्रव्यों में (अभिगच्छ) विधि 3/1 सक समझना चाहिये । (णिम्मोह) 2/1 वि आसक्ति-रहितता (इच्छ) व 3/1 सक , चाहता है अव्यय (अप्प) 6/1 . स्वयं की (अप्प) 1/1
आत्मा
यदि
अप्पा
अन्वय- तम्हा जदि अप्पा अप्पणो णिम्मोहं इच्छदि जिणमग्गादो दव्वेसु गुणेहिं आदं च परं अभिगच्छदु।
अर्थ- इसलिये यदि आत्मा स्वयं की आसक्ति-रहितता चाहता है (तो) जिन-मार्ग (जिनेन्द्र देव द्वारा प्रतिपादित आगम-पथ) से द्रव्यों में गुणों के साथ आत्मा (स्वयं) को और पर (अन्य) को समझना चाहिये।
1.
'सह, सद्धिं, समं' (साथ) अर्थ वाले शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
(102)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
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