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61. णाणं अत्यंतगयं लोयालोएसु वित्थडा दिट्ठी।
णमणिटुं सव्वं इ8 पुण जं हि तं लद्धं।।
ज्ञान
णाणं अत्यंतगयं
पदार्थों के अंत को पहुँचा हुआ
लोयालोएसु
लोक और अलोक में फैला हुआ
वित्थडा
दर्शन
दिट्टी णमणिटुं
(णाण) 1/1 [(अत्थ)+(अंतगयं)] [(अत्थ)-(अंत)(गय) भूकृ 1/1 अनि [(लोय)+ (अलोएसु)] [(लोय)-(अलोअ) 7/2] (वित्थड (स्त्री)-वित्थडा) 1/1 वि (दिट्ठि) 1/1 [(ण8)+ (अणि8)] पढें (णट्ठ) भूकृ 1/1 अनि अणिढं (अणिट्ठ) 1/1 वि (सव्व) 1/1 सवि (इट्ठ) 1/1 वि अव्यय (ज) 1/1 सवि अव्यय (त) 1/1 सवि (लद्ध) भूकृ 1/1 अनि
समाप्त किया गया अनिष्ट समस्त वांछित चूँकि
इसलिए वह प्राप्त कर लिया गया
लद्धं
अन्वय- णाणं अत्यंतगयं दिट्ठी लोयालोएसु वित्थडा पुण सव्वं अणिटुं णटुं हि जं इट्टं तं लद्धं।
___ अर्थ- (केवली का) ज्ञान पदार्थों (ज्ञेय) के अंत को पहुँचा हुआ (है) (और) (उनका) दर्शन लोक और अलोक में फैला हुआ (है)। चूँकि (उनके द्वारा) समस्त अनिष्ट समाप्त किया गया (है), इसलिए जो वांछित (है) वह प्राप्त कर लिया गया (है)।
प्रवचनसार (खण्ड-1)
(73)
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