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अपरनाम लक्ष्मी के साथ किया। अपने इन दो सम्बन्धियों के अतिरिक्त उसने बैंमिनरेश बहिग द्वितीय, सुयेन देश के यादव भिल्लम द्वितीय आदि अन्य कई शक्तिशाली मित्र बना लिये। राष्ट्रकूटों की प्रत्येक दुबलता का वह लाभ उठाने लगा। धल्ल नामक एक ब्राह्मण सरदार कृष्ण और मारसिंह का कोपभाजन बना तो तैलप से आ: मिला। यानीवंश का वह ब्राह्मण महान योद्धा एवं विलक्षण राजनीतिज्ञ था। तैलय ने उसे महामन्त्र-अक्षयपटल-अधिपाते का पद देकर अपने राजस्व विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया। शनैः-शनै: मंगलसिद्धि, विवेक-वृहस्पति, सचिवोत्तम आदि अन्य उपाधियाँ भी उसे अपने स्वामी तैलपदेश से प्राप्त हुई, और वस्तुतः वह इस नवोदित शक्ति का शराय मानिस खबर में यक्ष एवं प्रशासन-भार सौंपकर स्वयं तैलप शत्रुओं के दमन, सम्य-विस्तार और शक्ति-संवर्द्धन में जुट गया। धल्ल का पुन महादण्डनाचक नामदेव भी महान योद्धा एवं कुशल सेनानायक था। वह दोनों पिता-पुत्र जैन धर्मानुयायी रहे प्रतीत होते हैं। तैलप का सेनापति परस्तप तथा पुत्र युवराज सत्याश्रय भी अत्यन्त युद्ध-कुशल वीर थे। सैलप के भाग्योदय में इन सबका सहयोग था। उधर राष्ट्रकूटों का भाग्य-सूर्य अस्ताचलगामी छा। परमार सिवक द्वारा 972 ई. में मान्यखेट की लूट एवं विध्वंस, खोहिंग की हत्या और तदनन्तर ही उस क्षेत्र को प्रसनेवाले भीषण दुष्काल ने तेलप को स्वर्ण अक्सर प्रदान किया और 973 ई. में ही उसने मान्यखेट पर आक्रमण करके और उसके स्वामी कर्क द्वितीय को मारकर सष्ट्रकूटों की राजधानी पर अपना अधिकार कर लिया, किन्तु उसे अपनी राजधानी नहीं अनाया, बरन उसके स्थान में अपने वंश. और राज्य की राजधानी कल्याणी को बनाया, जही 974 ई. में उसने अपना राज्याभिषेक किया। गंश मारसिंह के समाधिमरण कर लेने पर तथा कुछ ही वर्षों बाद राष्ट्रकूट इन्द्र चतुर्थ के भी विरक्त हो जाने पर उसने गंगों के महासेनापति चामुण्डराय को भी अपना मित्र बना लिया। धीरे-धीरे उसने राष्ट्रकूट साम्राज्य के अन्तर्गत जिलने प्रदेश थे प्रायः सब पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। जब उसके तीन ही प्रबल प्रतिद्वन्द्वी बचे थे-तंजौर के चोल, बैंगि के चालक्य और मालवा के परभार। कहा जाता है कि मुंज परमार ने छह बार तैलप के राज्य पर आक्रमण किया
और प्रत्येक वार पराजित होकर लौटा-अन्तिम बार तो वह तैलय द्वारा बन्दी बना लिया गया । तैलप की बहन मृणालवती से प्रेम करके बन्दीगृह से निकल भागा, किन्तु पकड़ा गया और मार खाला गया। बैंगि के चालुक्यों को भी हैलप चे पराजित करके अपने वश में कर लिया। इस प्रकार चालुक्यों की राज्यलक्ष्मी को उसके अपहत्ता राष्ट्रकूटों से छीनकर पुनः प्रतिष्ठित करनेवाले इस धीर तैलपरस द्वितीय अहवमल्ल का निधन 997 ई. में हुआ। यह राजा विद्वानों और मुगी व्यक्तियों का आदर करता धा, सर्वधर्मसहिष्ण, उदार और दानी था। देश की सांस्कृतिक परम्परा को उसने पूर्वदत्त निधि चाल और प्रशस्त रखा। जैनधर्म के साथ तो उसने वैसा ही श्रद्धा
राष्ट्रकूट चोल-उत्तरवर्ती चालुक्य-मधुरि :: 135