Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 341
________________ आधुनिक युग : देशी राज्य (लगभग 1757 से 1947 ई.) मैसूर 1761-67 ई. में सजमन्त्री नजराज के आश्रित हैदरअली नामक सिपाही ने, जो बढ़ते-बढ़ते राज्य का सेनापति बन गया था, मैसूर राज्य पर स्वयं अपना अधिकार कर लिया था। उसका और उसके पुत्र टीपू सुल्तान का सारा जीवन अँगरेजों के साथ युद्ध करते ही बीता। इस सुल्तानी राज्य को 1801 ई. में अँगरेजों ने समाप्त किया और पुराने राज्यवंश के राजकुमार इम्मडि कृष्णराज ओडेयर को गद्दी सौंप दी। राज्य की शक्ति, सम्पत्ति और क्षेत्र भी सीमित कर दिये गये थे। धर्मस्थल के जैन प्रमुख कोमार हेगडे, ने इस नुरेश के सम्मुख उपस्थित होकर पूर्ववर्ती कृष्णराज ओडेबर की सनद पेश की और प्रार्थना की कि जी ग्रामादि पूर्वकाल में बेलगोल की दानशाला के लिए दिये गये थे और बीच के अन्तराल में बल्ति कर लिये गये थे, उनके लिए पुन: सनद जारी कर दी जाए। अस्तु, मार्च 25, 1810 ई. के दिन राजमन्त्री पर्णिया ने राजा की अनुमति से उपर्युक्त आशय की नवीन सनद जारी कर दी। इस नरेश के पौत्र और शामराज के पुत्र कृष्णराज ओडेयर के समय में अगस्त 9, 1830 ई. को अधणबेलगोल के पीठाधीश तत्कालीन थारुकीर्ति पण्डिताचार्य को राज्य की ओर से एक नवीन विस्तृत सनद प्रदान की गयी, जिसमें समस्त पूर्व प्रदत्त भूमियों, दानों आदि की पुष्टि की गयी थी। इसी नरेश ने 1828 ई. के लगभग श्रीवत्सगोत्रीय शान्तपण्डित के पुत्र की प्रार्थना पर केलसूर के जिनमन्दिर का नवीनीकरण किया, उसे चित्रांकनों अथवा भित्तिचित्रादि से सज्जित किया और उसमें तीर्थकर चन्द्रप्रभु, विजयदेव (पाच) और ज्यालिनीदेवी की प्रतिमाएँ पुनः प्रतिष्ठित करायी थीं। जब यही मरेश मैसूर के अपने रलजटित सिंहासन पर बैठा हुआ शासन कर रहा था तो 1829 ई. में राज्य का एक प्रसिद्ध गजराज जंगल में भाग गया। कोई भी उसे पकड़कर नहीं ला पा रहा था। तब जैन धर्मानुयायी देवनकोटे के अमलदार शान्तय्य के वीरपुत्र देवचन्द ने यह कार्य सम्पादन करके महाराज से एक गाँव की भूमि पुरस्कारस्वरूप प्राप्त की थी। 348 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ

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