Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 351
________________ और षड्यन्त्रों में ग्रस्त हो गया। घर की फूट सदैव विनाशकारी सिद्ध हुई है। इस फूट के प्रताप से न जाने कितने घर बिगड़ गये, सम्पन्न प्रतिष्ठित परिवार नष्ट हो मधे, शक्तिशाली महाराज्य स्वाहा हो गये और स्वतन्त्र देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ गये। उदयपुर के राणा भीमसिंह की रूपसी सुशीला राजकुमारी कृष्णा की मँगनी मानसिंह के पूर्ववर्ती जोधपुर नरेश भीमसिंह के साथ ही गयी थी, किन्तु उसकी मृत्यु हो गयी और जोधपुर के ही एक कुचक्री के प्रयत्न से उस राजकुमारी का सम्बन्ध जयपुर नरेश जगतसिंह के साथ निश्चित हो गया। इसपर उन्हीं कुचक्री सामन्तों ने मानसिंह को भड़काया कि 'सिंह का शिकार क्या स्यार ले जाएगा?' मानसिंह ने जगतसिंह को पत्र लिखा कि वह राजकुमारी के साथ सम्बन्ध तोड़ दे, क्योंकि उसकी मँगनी जोधपुर नरेश से हो चुकी है, अतएव जोधपुरवाले ही उसे विवाह कर लाएंगे। जगतसिंह ने पत्र की अवहेलना की तो उन्हीं सरदारों के भड़काने से मूर्ख मानसिंह ने सेना लेकर जयपुर पर आक्रमण कर दिया, किन्तु ऐन युद्ध के समय जोधपुर के के सरदार तथा मानसिंह का कुटुम्बी बीकानेर का राजा भी अपनी-अपनी सेनाओं के साथ जयपुर की सेना में जा मिले। यह देखकर मानसिंह के दुख और आश्चर्य की सीमा न रही और युद्धक्षेत्र में पीठ दिखा, थोड़े से सरदारों और सैजिकों की सहा बीसलपुर : उसका विचार जालौर में शरण लेने का था, किन्तु उसके एक जैन कर्मचारी चैनमल संघवी ने उसे समझाया कि सोधे जोधपुर जाकर राजधानी में ही अपने सिंहासन, राज्य और प्राणों की रक्षा करें, अन्यत्र भटकने से सबसे हाथ धोना पड़ेगा। अतएव जोधपुर ही आकर राजा रक्षा के प्रयत्न में लगा, किन्तु शंकालुचित्त हो उठा था और जो बचे-खुचे विश्वस्त और राज्यभक्त सामन्त- सरदार थे उनपर भी सन्देह करने लगा था। उसने उनमें से भी अनेक को दुर्ग से बाहर निकाल दिया। इन्हीं लोगों में इन्द्रराज सिंघवी भी था जो उसके पूर्ववर्ती दो राजाओं, विजयसिंह और भीमसिंह के समय में भी राजमन्त्री (दीवान) के पद पर रह चुका था। इसी बीच जयपुर नरेश जगतसिंह ने एक बड़ी सेना लेकर जोधपुर पर आक्रमण कर दिया था और राजधानी का घेरा डाल दिया था। जोधपुर के कई सरदार तो पहले ही ससैन्व उसके साथ थे, इन नवागन्तुकों को पाकर वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ, किन्तु यहीं वह धोखा खा गया । इन्द्रराज और उसके साथी अपने राजा द्वारा किये गये अपमान से क्षुब्ध तो हुए, किन्तु वे देशद्रोही नहीं थे। उन्होंने शत्रु सैन्य में रहकर उसकी समस्त गतिविधि जान लो । जगतसिंह के प्रमुख सहायक अमीरखाँ पिण्डारी को फोड़ लिया और चुपके से एक दिन वहाँ से पलायन कर और कुछ सेना एकत्र करके स्वयं जयपुर पर आक्रमण कर दिया और उसे लूटा। समाचार मिलते ही भौचक्का हुआ जगतसिंह अपने राज्य की रक्षा के लिए दौड़ा। मार्ग में ही इन्द्रराज के दल से मुठभेड़ हुई। जगतसिंह पराजित होकर जयपुर भाग गया और इन्द्रराज उससे जोधपुर राज्य की लूटी हुई सब सम्पत्ति एवं 358 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ

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