Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 386
________________ इसीलिए इमर्सन-जैसे चिन्तक ने कहा था कि किसी भी इतिहास का विश्लेषण करें सो अस्तुतः एवं स्वभावतः वः कुरु एक दृढ़ निश्चयी, कर्मठ, सच्चे, ध्येयनिष्ठ एवं कर्तव्यनिष्ट व्यक्तियों का जीवन चरित्र ही सिद्ध होता है।' इन महान् पुरुषों के चरित्र पढ़ने और जानने का एक सुफल यह होता है कि हमारे मानस-पटल पर अनेक भव्य, भद्र, अनुकरणीय, महान् व्यक्ति मुर्ताकार एवं सजीव हो उठते हैं। वे हमारे जीवन और व्यक्तित्व का अंग बन जाते हैं। काल और क्षेत्र के व्यवधान समाप्त हो जाते हैं। उनके और हमारे मध्य एक अद्भुत निकटता, एक सुखद एकत्व एवं अपनत्व स्थापित हो जाता है। उनकी सफलता और अभ्युदय पर हम हर्षित होते हैं, उनकी महत् उपलब्धियों से स्वयं को गौरवान्वित हुआ अनुभव करते हैं, उनके जीवन से शिक्षा, प्रेरणा और पथप्रदर्शन प्राप्त करते हैं, और उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करते हैं। इतना ही नहीं; उनकी त्रुटियों, कमजोरियों, ग़लतियों, असफलताओं, कष्टों और विपतियों पर हमारा वित्त संवेदना और सहानुभूति से भर उठता है। परिणाम यह होता है कि हम मनुष्यमात्र में, समग्न मानयता में गहरी दिलचस्पी लेने लगते हैं, जो स्वयं में एक बड़ी भारी पहालिया है। माना जाकी स्वार्थपरता, अहंमन्यता, एकाकीपन और कूपमण्डूकता को समाप्त करके उसे संवेदनशील और सहिष्णु बना देता है। वह स्वयं को समग्र एवं वैकालिक जातीय जीवन का अभिन्न अंग समझने लगता है। कुछ ऐसी ही भावनाओं से प्रेरित होकर तीर्थंकर भगवान महावीर के समय (ईसा पूर्व 600) से लेकर 1947 ई. में इस महादेश द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्ति पर्यन्त, लगभग अढ़ाई सहल वर्षों में हुए ऋतिपब उल्लेखनीय महत्ववाले पुरुषों एवं महिलाओं के संक्षिप्त परिचय, युगानुसारी एवं क्षेत्रानुसारी योजना के अन्तर्गत कालक्रम से निबद्ध करने का विगत पृष्ठों में प्रयास किया गया है। लौकिक क्षेत्र में, अपनी-अपनी परिस्थितियों में उल्लेखनीय अभ्युदय प्राप्त करने तथा देश, जाति, धर्म, संस्कृति, साहित्य और कला के संरक्षण एवं अभिवृद्धि में यथाशक्य और यथावसर योग देने के कारण वे जैन इतिहास के, अतएव अखिल भारतीय इतिहास के भी सदृढ़ स्तम्भ हैं। इनमें बड़े-बड़े चक्रवर्युपम सम्राट्, राजे-महाराजे, सामन्त-सरदार, प्रचण्ड युद्धवीर और सैन्य-संचालक, विचक्षण राजमन्त्री और कुशल प्रशासक, धनकुबेर सेठ, सार्थवाह, व्यापारी और व्यवसायी, धर्मप्राण राजमहिलाएँ एवं अन्य नारीरत्न, कलापूर्ण विशाल मन्दिरों के निर्माता, संघपत्ति, दानवीर और धर्मात्मा गृहीजन सम्मिलित हैं। उनकी यह परिचयाचलि संक्षिप्त और अनेक यार सांकेतिक एवं पर्याप्त होते हुए भी, मानने योग्य, रुचिकर और उपयोगी होगी। अजैन तथा स्वयं जैन पाठकों की जैनों और उनके इतिहास तथा भारतीय इतिहास में जैनों के योगदानविषयक अनेक भ्रान्तियों का निरसन भी होगा। उपसंहार :: 993

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