Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 388
________________ क्रूर, डरपोक, विलासी, प्रमादी और अस्थिरचित्त बन जाता है। हिंसा से हिंसा पनपती है, और अहिंसा से अहिंसा एवं शान्ति । पूर्वोक्त व्यक्ति परियों में कही-कहीं कतिपये भूल रहीं हो सकती है औ अनेक ऐसे महानुभाव भी रहे हो सकते हैं, जिनका समावेश इस पुस्तक में होना चाहिए था और नहीं हो पाया। किन्तु इन दोनों कमियों का प्रधान कारण आवश्यक साधनों का अभाव रहा, और किन्हीं अंशों में समयाभाव भी विशेषकर आधुनिक युग सम्बन्धी परिचयों में, क्योंकि वे अति निकट समय के हैं, ऐसा लग सकता है कि जिन महानुभावों का परिचय दिया गया, उन्हीं जैसे अनेक उल्लेखनीय व्यक्ति छूट गये हैं। इस सम्बन्ध में दो दृष्टियाँ रही हैं। एक तो यह कि जी सज्जन 1 9वीं शती में जन्मे और स्वतन्त्रता प्राप्ति (1947 ई.) के पूर्व ही दिवंगत हो गये, अथवा उनका कार्यकाल मुख्यतया उसी अवधि के भीतर समाप्त हो गया, उनका ही उल्लेख किया गया है। दूसरे, पुस्तक की मूल योजना के अनुसार साधु-सन्तों, शुद्ध साहित्यकारों, कलाकारों, समाज सेवियों आदि का समावेश नहीं किया गया। लौकिक क्षेत्र में विशेष अभ्युदय प्राप्त करनेवाले सज्जनों तक ही सीमित रहने का प्रयत्न किया गया । तथापि जिन महानुभावों का परिचय साधनाभाव या असावधानी के कारण समाविष्ट नहीं हो पाया, उन्हें किसी प्रकार की गौणता प्रदान करने का लेखक का अभिप्राय कदापि नहीं है। अतएव ऐसे किसी भी अभाव को किसी भी सज्जन को अन्यथा भाव से नहीं ग्रहण करना चाहिए। ध्यातव्य यह है कि विगत अढ़ाई सहस्र वर्षों में हुए जिन ऐतिहासिक पुरुषों और महिलाओं का परिचय पुस्तक में दिया गया है, वे जैन संस्कृति और जैन जाति के संरक्षकों, प्राणदाताओं और उन्हें गौरवान्वित बनाये रखनेवाले असंख्य जनों के उदाहरण मात्र हैं। जैन परम्परा और उसका इतिहास सप्राण एवं सचेतन है। वर्तमान जैन समाज में भी शिक्षा का अनुपात प्रायः सर्वाधिक और अपराध का प्रायः न्यूनतम है। उसका स्त्री समाज भी जाग्रत, सुशिक्षित और प्रगतिशील है। देश के स्वतन्त्रता संग्राम में सहस्त्रों आबाल-वृद्ध स्त्री-पुरुषों ने सक्रिय योग दिया, तन-मन-धन अर्पण कर दिया और प्रशंसनीय बलिदान किये हैं। वर्तमान में भी जैन समाज में सहस्रों सन्त, साधु-साध्वियों और लोक-सेवाव्रती हैं, उच्च्कोटि के साहित्यकार, पत्रकार और कलाकार हैं, शिक्षा - शास्त्री, शिक्षा-संस्थाओं के संस्थापक, संचालक, व्यवस्थापक, प्राध्यापक और अध्यापक हैं, शीर्षस्थानीय चिकित्सक और वकील, बैरिस्टर एवं अभियन्ता हैं, प्रशासन के विविध वर्गों में केन्द्र एवं राज्यों के मन्त्रियों, विधायकों आदि से लेकर उच्चातिउच्च पदों पर तथा सामान्य पद पर कार्य करनेवाले अधिकारी हैं, सेना के भी जल-थल नभ तीनों ही विभागों में सेवा करनेवाले वीर सैनिक हैं, कृषक, शिल्पी और दस्तकार हैं तथा लाखों व्यापारी, व्यवसायी एवं उद्योगी हैं, जिनमें से अनेक अपने क्षेत्रों में शीर्षस्थानीय हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त के लगभग उपसंक्षर 395

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