Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 356
________________ करें, कोई व्यक्ति किसी प्रकार उसमें बाधक नहीं होगा और मन्दिरों की सम्पत्ति जो कोई छूटकर ले गया हो वह सब उन्हें वापस करा दी जाए। अस्तु, इसके उपरान्त कई नये जिनमन्दिर बने, उत्सव आदि हुए, विशेषकर 1764 ई. का इन्द्रध्वज - पूजोत्सव, जिसमें यह अपने सहयोगी दोवान रतनचन्द के साथ अग्रणी थे। दुर्भाग्य से इन्हीं के समय में किन्तु इनके बिना जाने कतिपय धर्म विद्वेषियों ने 1769-70 ई. में जैन जंगत् की विभूति पण्डितप्रवर जी की चुपके से दृष्ति रूपमें हत्या करा दी। उसका प्रतिकार तो कुछ न हो सका, किन्तु पुनर्निर्माण और उत्सव आदि होते रहे, यथा-1769 ई. में माधोपुर की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा उसमें भी विद्वेषियों ने लूटमार मचायी। श्याम तिवारी को भी इन्हीं के कहने से राजा ने राज्य से निर्वासित कर दिया बताया जाता है। इनके पूर्व सम्भवतया इनके पिता मौजोराम छाबड़ा भी राज्य के दीवान रहे। नैनसुख विन्दूका मुकुन्ददास खिन्दूका के पुत्र थे और 1757 ई. से 1778 ई. तक राज्य के दीवान रहे प्रतीत होते हैं। www संघी नन्दलाल गोधा - महाराज मानसिंह के महामात्य और मोजमाबाद के प्रसिद्ध निर्माता साह नानू के वंशज तथा अनूपचन्द गोधा के पुत्र थे और 1766 ई. से 1771 ई. तक राज्य के दीवान रहे। इन्होंने 1769 ई. में माधोपुर में विशाल बिम्ब-प्रतिष्ठा करायी थी। जयचन्द साह - दीवान रतनचन्द साह के पुत्र थे और 1767 ई. तक राज्य के दीवान रहे थे। संघी मोतीराम गोधा - दीवान नन्दलाल गोधा के पुत्र थे और 1768 से 1777 ई. तक राज्य में दीवान रहे। इन्होंने 1789 ई. में राजा पृथ्वीसिंह के राज्य में माधोपुर में भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति के उपदेश से बिम्ब-प्रतिष्ठा करायी थी। भीचन्द छाबड़ा दीवान किशनचन्द छाबड़ा के पुत्र थे और 1769 ई. से ही राज्य की सेवा में एक उच्च पद पर नियुक्त थे तथा 1798 से 1802 ई. तक दीवान भी रहे। इनकी मृत्यु 1810 ई. में हुई। जयचन्द छाबड़ा - दीवान बालचन्द छाबड़ा के पाँच पुत्रों में सबसे बड़े थे और 1772 ई. से 1798 ई. तक दीवान रहे। यह बड़े धर्मात्मा एवं प्रभावशाली सज्जन 1 अमरचन्द सोगानी - भयाराम के पुत्र थे और 1772 ई. से 1777 ई. तक दीवान रहे। जीवराज संघी - 1773 से 1788 ई. तक दीवान रहे। मोहनराम संधी जीवराज संघी के पुत्र थे और 1777 ई. से 1780 ई. तक दीवान रहे। श्योजीलाल पाटनी बिन्दूका - दीवान रतनचन्द साह के पुत्र और दीवान आधुनिक युग देशी राज्य : 363

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