Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 377
________________ दिल्ली डिवीजन के खजांची नियुक्त हुए थे। वह दिल्ली बैंक व लन्दन बैंक के भी खजांची थे। नगरपालिका के सदस्य एवं कोषाध्यक्ष, आनरेरी मजिस्ट्रेट और वायसरोगल दरबारी भी थे। उनके उपरान्त 1878 ई. में उनके छोटे भाई अयोध्याप्रसाद भी सरकारी खजांची रहे । तदनन्तर ला. ईशरीप्रसाद के सुपुत्र रायबहादुर पारसदास ने भी अपने पिता के समस्त पदों का उपभोग किया और अपने समय के दिल्ली के प्रमुख प्रतिष्ठित सज्जनों में से थे। उन्होंने एक जैन सन्दर्भ ग्रन्थ-सूची भी प्रकाशित की थी। गुरु गोपालदास बरैया -- आगरा निवासी एछियामोत्री बरैया जातीय लक्ष्मणदास के सुपुत्र थे। घर की आर्थिक स्थिति अत्यन्त साधारण थी और प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा भी नाममात्र की थी। इनका जन्म 1866 ई. में हुआ था और 19 वर्ष की आयु में अजमेर में रेलवे में साधारण-सी नौकरी कर ली। दो वर्ष के बाद (1887 ई. में) अजमेर के सेठ मूलचन्द नेमीचन्द सोनी के यहाँ उनके भवन निर्माण कार्य की देखभाल की नौकरी की जो छह या सात वर्ष चलती रही। इसी बीच विद्याव्यसन लगा, पण्डित बलदेवदासजी आदि विद्वानों का सम्पर्क मिला। शनैः-शनैः अपनी मेधा एवं अध्यवसाय के बल पर प्रकाण्ड पण्डित और उद्भट विद्वान् बन गये। कुछ वर्ष THE रहे। वहाँ भी प्रारम्भ में नौकरी की। किन्तु स्वतन्त्र मनोवृत्ति के स्वाभिमानी थे अतः व्यापार में पड़ गये। कई प्रयोगों के बाद ग्वालियर राज्य के मोरेना में आकर स्थायी रूप से बस गये। आर्थिक स्थिति राज्य और में प्रतिष्ठा बढ़ती गयी। आनरेरी मजिस्ट्रेट भी नियुक्त हो गये और पोरेना में अपने विद्यालय की स्थापना कर दी। स्वनिर्मित व्यक्तित्व के धनी वरैयाजी की धाक जैनाजैन विद्वज्जगत् में जम गयी। सार्वजनिक अभिनन्दन हुए, न्याय- वाचस्पति, वादिगजकेसरी और स्वायादवारिधि जैसी उपाधियाँ मिलीं। अनेक उद्भट विद्वान् शिष्य तैयार कर दिये। समाज के प्रायः सभी गण्यमान्य विद्वानों एवं श्रीमानों की श्रद्धा के पात्र बने । अदभुत विद्याव्यसनी, अगाध पाण्डित्य के धनी, प्रभावक वक्ता एवं शास्त्रार्थी, कई ग्रन्थों के रचयिता, कुशल- शिक्षक, प्रगाढ़ श्रद्धा से युक्त एवं कुशल दृढ़चारित्रो धर्म एवं समाजसेवी, निर्भीक, अटूट उत्साह और लगनवाले, पत्रकार (जैन मित्र के वर्षो सम्पादक रहे), प्रबुद्ध समाज सुधारक, साथ ही स्वतन्त्रजीवी, सफल व्यापारी भी और आधुनिक युग में जैन जागृति के समर्थ पुरस्कर्ताओं में परिगणित गुरु गोपालदास बरैया का मात्र 51 वर्ष की आयु में 1917 ई. में निधन हुआ। सेठ मथुरादास टडैया - ललितपुर जिला झाँसी के परवार जातीय टयागोत्री सेठ मुन्नालाल के सुपुत्र थे। जन्म 1872 ई. में और स्वर्गवास 1918 ई. में हुआ। अपने परिश्रम, नेकनीयती, मधुर स्वभाव एवं व्यापार-पटुता के कारण व्यापार में बड़ी उन्नति की, दसियों मण्डियों में इनकी गही थीं। साथ ही बड़े धर्मात्मा, साधमवत्सल, 384 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं

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