Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 352
________________ सामग्री छीनकर विजय-दुन्दुभि बजाता हुआ जोधपुर आया। मानसिंह अपनी भूल पर पछताया, जोधपुर में वीर इन्द्रराज का अपूर्व स्वागत किया, स्वयं दिल खोलकर उसकी छन्दबद्ध प्रभूत प्रशंसा की और उसे भारयाड के प्रधान सेनापति पद पर प्रतिष्ठित किया। इस समस्त घटना का एक अत्यन्त दुखद प्रसंग यह था कि मेवाड़ राज्य की जयपुर-जोधपुर और पिण्डारियों से रक्षा करने के लिए राजकुमारी कृष्णा ने विषपान करके अपना बलिदान दे दिया। मानसिंह ने अब बीकानेर के राजा से 52-228 बदला लेने के लिए इन्दसल के नेतृत्व में एक बड़ी सेना और अन्य सरदारों को लेकर स्वयं प्रस्थान किया और बापरी के युद्ध में बीकानेर की सेना को पराजित किया। वह राजा भागकर बीकानेर की ओर चला गया तो इन्द्रराज ने उसका वहाँ भी पीछा किया और गजनेर में उसे पुनः युद्ध करने पर तथा पराजित करने के बाद सन्धि करने पर विवश किया और युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में फलौदी परगना तथा दो लाख रुपये उससे वसूल किये। मानसिंह अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने राज्य के प्रायः सम्पूर्ण अधिकार इन्द्रराज को ही सौंप दिये। वह कहा करता था- बैरी मारन मीरखा, राज काज इन्दराज, महतो शरणोनाथ रे, नाथ सेबारे काज!' परन्तु इन्द्रराज के इस उत्कर्ष से उसके पुराने शत्रु अत्यन्त विक्षुब्ध हुए और उसका नाश करने के षड्यन्त्र करने लगे। अन्ततः महाराज के मुँहलगे अमीरजाँ पिण्डारी को भड़काकर उसके पठानों द्वारा किले के भीतर झूठे झगड़े के मिस दिन दहाड़े कीर इन्द्रराज सिंघवी की हत्या करा देने में वे सफल हो गये। इस देशभका, स्वामिभक्त, युद्धबीर, कुशल राजनीतिज्ञ, राज्य के सर्वाधिकारी और अपने परमप्रियपात्र राज्यस्तम्भ की 1816 ई. की चैत्र शुक्ल अष्टमी के दिन हुई इस हत्या से महाराज मानसिंह पर वज्रपात हुआ और वह राज्यकार्य से उदासीन हो एकान्तवास करने लगा! काफी समय पश्चात् स्वस्थ हो उसने राज्यकार्य में पुनः मन दिया लगता है, क्योंकि उसका राज्यकाल तो 1849 ई. तक रहा। धनराज सिंघवी-जयपुर के निकट टोगा के युद्ध में सिन्धिया को पराजित करके जोधपुर नरेश विजयसिंह के सेनापति भीमराज सिंघवी ने 1787 ई. में अजमेर के मराठा सूबेदार अनवरबेग से अजमेर छीन लिया और उस क्षेत्र पर अपने राजा का अधिकार स्थापित कर दिया था। राजा ने साहसी धीर सेनानी धनराज सिंघवी को, जो सम्भवतया भीमराज का भाई या पुत्र था, अजमेर का सूबेदार नियुक्त किया। मराठों ने अपनी शक्ति संगठित करके 1791 ई. में पुनः मारवाड़ पर भीषण आक्रमण किया और मेड़ता एवं पाटन के घोर युद्धों में मारवाड़ियों को पराजित किया। इसी बीच मराठों के सेनापति डीबोइन ने अजमेर पर आक्रमण करके उसका घेरा डाल दिया। किन्तु बीर बनराज मे डटकर मुकाबला किया और सफलतापूर्वक अजमेर की रक्षा करता रहा । उसके सामने डीबोइन की एक न चली। किन्तु पाटन की पराजय के बाद उसके राजा विजयसिंह ने उसे आदेश भेज दिया कि अजमेर को खाली करके आधुनिक युग : देशी राज्य :: 359

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