Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 350
________________ लड़े थे। राजा मानसिंह उनका बहुत विश्वास करता था। राजकीय प्रपंचों से दूर रहते... हुए बाद अपना कार्य 1820 ई. में अपनी मृत्युपर्यन्तं प्रतिष्ठापूर्वक करते रहे। मेहता नवतमत-मेहता ज्ञानमल के पुत्र थे और 1804 ई. में इन्होंने अपने राजा के लिए सीरोही को विजय किया था। अल्पावस्था में ही इनकी मृत्यु, अपने पिता के सामने हो, 1819 ई. में हो गयी थी। ___ मेहता रामदास ...मेहता नवलमल का पुत्र था और 1820 ई. में अपने पितामह ज्ञानमल का उत्तराधिकारी हुआ था। मेहता चैनसिंह- मेहता चैनसिंह भी मुहनोत वंश में ही उत्पन्न हुए थे और रूपनगर नरेश तरदारसिंह के मुख्य दीवान मेहता देवीचन्द के पुत्र या भतीजे थे। यह स्वयं 1796 ई. में कृष्णगढ़ नरेश प्रतापसिंह के मुख्य दीवान बने थे और उसके उत्तराधिकारी कल्याणसिंह के पूरे राज्यकाल में उस पद पर बने रहे। यह ऐसे देशभक्त, स्वामिभक्त, कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार वे कि महाराज प्रतापसिंह कहा करते थे कि चैनसिंह बिना सब चोर मुसद्दी । इनकी दीवानगिरी के समय में मराठों ने अनेक बार इनके राज्य पर आक्रमण किये, किन्तु इनकी दृढ़ता, वीरता और राजनीति के सम्मुख उन्हें सदैव मुंह की खानी पड़ी। इनकी मृत्यु 1804 ई. में हुई। गंगाराम भण्डारी-जोधपुर के प्रसिद्ध भण्डारी वंश में उत्पन्न मंगाराम भण्डारी कुशल राजनीतिज्ञ और वीर सेनानी था। वह महाराज विजयसिंह (1752-92 ई.) के राज्यकाल में हुआ था और 1790 ई. में मराठों के साथ हुए मेड़ता के युद्ध में उसने बड़ी वीरता प्रदर्शित की थी। लक्ष्मीचन्द्र भण्डारी-जोधपुर नरेश भीमसिंह (1792-1805 ई.) के उत्तराधिकारी मानसिंह (1503-43 ई.) के समय में राज्य का दीवान रहा। इसे 2000 रुपये आय की जागीर मिली थी। पृथ्वीराज भण्डारी-महाराज मानसिंह के समय में जालौर का शासक था। बहादुरमल भण्डारी-महाराज तख्तसिंह (1843-79 ई.) के समय में राजा और प्रजा के भरसक हितसाधन में वह सदा संलग्न रहता था, इसी से राजा और प्रजा दोनों ही उससे प्रसन्न थे। नमक के ठेके के सम्बन्ध में उसने जो व्यवस्था की थी उससे मारवाड़ की जनता उसकी घिर-उपकृत हुई। इस लोकप्रिय राज्य मुतसदी का सत्तर वर्ष की आयु में 1885 ई. में स्वर्गवास हुआ। किशनमल भण्डारी-बहादुरमल भण्डारी का पुत्र था और अर्थव्यवस्था में अत्यन्त निपुण था। महाराज तख्तसिंह के समय में ही वह जोधपुर राज्य का कोषाध्यक्ष नियुक्त हो गया और महाराज सरदारसिंह के प्रायः पूरे राज्यकाल में उस पद पर बना रहा। वह अपने समय का बड़ा लोकप्रिय अर्थमन्त्री था। सिंघवी इन्द्रराज-जोधपुर नरेश मानसिंह अस्थिरचित्त व्यक्ति था। उसके राज्यकाल के प्रायः प्रारम्भ में 1804 ई. में ही जोधपुर राज्य आन्तरिक कलह, फूट आधुनिक युग : देशी राज्य :: 357

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