Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 283
________________ भवाय भी AM मन्त्री वैप (द्वितीय) के भाई थे। पिता पति संग अपने गुणों के लिए लोकसम्मानित थे। जैनागम के ये अनुयायी और जिनधर्मरूपी बल्लरी के लिए समर्थ तरु थे। माता जानकी रामवप्रिया जानकी की माँति चारुशीलगुणभूषणोज्ज्वला थी । reter austre चप (द्वितीय) भारी युद्धवीर विजेता और भव्याग्रणी था तथा 1420 के लगभग राजा का महाप्रधान था। स्वयं दण्डेश इरुगप महानू पराक्रमी, प्रतापी, वीर, राजनीतिपटु, उदार, दानी और परम जिनभक्त था। वह रत्नत्रय का परम आराधक था, चतुर्विध पात्रदान में तथा दीन-दुखियों का दुःख-कष्ट दूर करने में सदा तत्पर रहता था, हिंसा - अनृत- चौर्य - परस्त्रीसेवन आदि कुव्यसनों से दूर रहता था, जिनेन्द्र की यशोगाथा सुनने में उसके कान, उनका गुण-कीर्तन करने में उसकी जिला, उनकी वन्दना में उसका शरीर और उनके चरणकमलों का सौरभ सेवन करने में उसकी नासिका स्वयं को धन्य मानते थे । उसका धवलयश पृथ्वी पर चहुँ ओर व्याप्त था । इस सचिवकुलाग्रणी दण्डाधीश इरुप ने श्रवणबेलगोल के महाविद्वान् पीठाचार्य पण्डिताचार्य को गोम्मटेश्वर की नित्य पूजा के हेतु बेलगोल ग्राम तथा एक विशाल सरोवर बनवाकर उसे उसके तटवर्ती सुन्दर उपवन सहित 1422 ई. में उक्त आचार्य को समर्पित कर दिया था। तत्कालीन शिलालेखों में इस वीर की प्रभूत प्रशंसा प्राप्त होती है। महाराज देवराज द्वितीय के पूरे राज्यकाल में विजयनगर साम्राज्य का प्रमुख स्तम्भ बना रहा; क्योंकि 1442 ई. में वह राज्य के अलि महत्त्वपूर्ण प्रान्त चन्द्रगुप्ति एवं गोआ का सर्वाधिकारी शासक था। श्रुतोद्धारक राजकुमारी देवमति - तौलव देश की इस धर्मात्मा विदुषी राजकुमारी ने श्रुतपंचमीव्रत के उद्यापन में सुप्रसिद्ध महाविशालकाय धवल, जयधवल, महाधवल की ताडपत्रीय प्रतियाँ लिखाकर मूडबिद्री (वेणुपुर ) की गुरु-बसदि अपरनाम सिद्धान्त बसदि में स्थापित की थी। इस विपुल द्रव्य एवं समय साध्य महान् कार्य द्वारा उसने सिद्धान्त शास्त्रों की रक्षा की थी। यह नगर उस युग में प्रसिद्ध जैन केन्द्र था और 1429 ई. के एक शिलालेख के अनुसार वह सद्धर्म के पालक युण्य कार्यों को सहर्ष करनेवाले और धर्मकथा श्रवण के रसिक भव्य समुदाय से भरा हुआ था। गोपसूप - महाराज देवराय प्रथम के समय में लगभग 1400 ई. में उसका यह महाप्रधान गोपचमूप निडुगल दुर्ग का शासक था। वह जैन वीर सेनापति अपने स्वामी के राज्य की रक्षा करने में परम उत्ताही या और मन्त्री पद पर आरूढ़ था । धर्मात्मा भी ऐसा था कि उसे जिनेन्द्र समयाम्बुधिवर्धन पूर्णचन्द्र कहा गया है। निडुगल दुर्ग राज्य का एक महत्त्वपूर्ण पहाड़ी किला था। गोप महाप्रभु - गोपगौड या राजा गोपीपति ( प्रथम ) बान्धवपुर के शान्तिनाथ का भक्त था और वक्त नगर का शासक था। उसका पुत्र धर्मात्मा श्रीपति ( सिरियण्ण ) था और पौत्र उसी का नामधारी गोपीपति (द्वितीय) गोपण या गोपमहाप्रभु था । वह मलेनाड का शासक था और कुप्पटूर में निवास करता था, जहाँ 240 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ

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