Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 337
________________ धर्मकार्य किया था। पूर्व काल में पापञ्चराय ने यहाँ गोम्मटेश की विशाल मूर्ति प्रतिष्ठापित की थी, इसलिए कारकल पागड्यनगरी भी कहलाता था। राजा भैरव द्वितीय ने उपर्युक्त मन्दिर बनवाने और दाम देने के साथ ही साथ बड़े राज महल के प्रांगण में स्थित चन्द्रनाथ-बसदि तथा गोवर्धनगिरि पर स्थित पार्श्वनाथ-बसदि में नित्यपूजन के हेतु भी उत्तम व्यवस्था कर दी थी। __1591 ई. में किन्निग 'भूपाल नामक युवराज ने कन्नए प्रान्त में स्थित एक जिनालय के लिए भूमिदान दिया था। यह युवग़ज़ सम्भयतया तमिलनार के किसी राज्यवंश का था। 1549 ई. में सम्भयतया कारकल के उसी भैरव द्वितीय के सामन्त पापमय नायक और उसके भाई देरेनायक ने कोम्प' नामक स्थान में साधन-चैत्यालय नाम का पार्वमन्दिर बनवाया था और उसके लिए उन दोनों भाइयों में तथा राजा भैरव द्वितीय और उसके उक्त उत्तराधिकारी पाण्ड्यवोडेयर ने भी भूमिदान दिवे थे। वनूर का जिलवश :.. Tea m __ तुलुदेश के धेनूर, (वेणरु) नगर में राज्य करनेवाले इस सोमकुली राज्य बंश का संस्थापक तिम्मण अजित प्रथम (लगभग ! 154-80 ई.) था। मूलतः वह पश्चिमी घाटवती गंगाडि का निवासी और सम्भवलया गंगवंश में ही उत्पन्न हुआ था। अजिल राजे स्वयं को गोम्मटेश प्रतिष्ठापक प्रसिद्ध मंग सेनापति चामुण्डाय का वाज बताते हैं, किन्तु गोविन्द पै-जैसे इतिहासकारों का मत है कि अजिल राजाओं का पूर्व पुरुष चामुण्डराय बनवासी के कदम्बाश का कोई राजकुमार था । अजिलवंश में मामा से भानजे को उत्तराधिकार चलाता था और प्रारम्भ से प्रायः अन्त तक उसमें जैनधर्म की प्रवृत्ति रही। अजित प्रथम का उत्तराधिकारी उसका भानजा गयकुमार प्रथम (1186-1204 ई.) था। अनेक राजाओं के होने के उपरान्त रायकुमार द्वितीय हुआ। उसकी मृत्यु 1550 ई. में हुई और उसका उसराधिकारी उसका भानजा वीर तिम्मराज अजित चतुर्थ (1550-1830 ई.) हुआ सो उसका जामाता भी था। उसकी जननी का नाम पाइय देवि और पिता का पाण्ड्य भूपत्ति था। इस वीर, प्रतापी, उदार एवं धर्मात्मा राजा ने अपनी राजधानी बेनूर में कार्कल जैसी ही एक विशाल गोम्मटेश-प्रतिमा के निर्माण का विचार किया और राजधानी के निकटस्थ कल्याणी ग्राम में मूर्ति का निर्माण कार्य भी प्रारम्भ हो गया। कारकल के तत्कालीन नरेश इम्मति भैरवराय को ईर्ष्या हुई और उसने सोचा कि इस मूर्सि की स्थापमा से बेनूर की प्रतिष्ठा कारकल से भी अधिक हो जाएगी, अतएव उसने तिम्मराज से अपने संकल्प को त्याग देने के लिए कहा 1 तिम्मराज ने यह बात स्वीकार नहीं की तो भैरव ने तिम्मराज पर चढ़ाई कर दी। दोनों में तुमल युद्ध हुआ, जिसमें वीर लिम्मराज ही विजयी हुआ। मूर्ति को सुरक्षा के लिए लिम्मराज ने युद्ध में जाने से पूर्व उसे 344 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं

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