Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 325
________________ परिवार को कोल्डू में पिलवा दिया. झए । अतएव करमसी के पुत्र प्रतापप्ती तथा ११ परिवार के कितने ही व्यक्तियों की हत्या रामसिंह के पुत्र इन्द्रसिंह ने करवा दी। करमनी की दो विधवा पत्नियों अपने पुत्रों सामन्तसिंह और संग्रामसिंह के साथ किसी प्रकार बचकर भाग निकली और इन लोगों में किशनगढ़ में जाकर शरण ली तथा वहाँ से बीकानेर चले गये। करमसी के परिवार के भागौर भाग जाने पर ही जसवन्तसिंह ने प्रतिज्ञा कर ली थी कि इस परिवार के किसी व्यक्ति को राजसेवा में नहीं लिया जाएगा। करमसी के भाई मेहता वैरसी (कहाँ-कहीं इन्हें सुन्दरदास का पुत्र लिखा है) रूपनगर के राजा मानसिंह (1585 ई.) के तन-दीवान हो गये थे। जसवन्तसिंह के पुत्र अजीतसिंह ने जब मारवाड़ राज्य पर अपना अधिकार स्थिर कर लिया तो उसने करमसी के पुत्रों सामन्तसिंह और संग्रामसिंह को बीकानेर से बुलाकर धैर्य दिया और अपनी सेवा में पुनः ले लिया। इस राक्षा के समय में 1728 ई. में मेहता संग्रामसिंह जोधपुर राज्य के मारोठ, परबतसर आदि साल परगनों के और सामन्तसिंह जालोर के शासक थे, जहाँ उन्होंने 1727 ई. में सामन्तपुरा ग्राम बसाया था। अजीतसिंह के उसराधिकारी अभयसिंह ने पूर्यकाल में प्रक्ष कर ली गयी इस परिवार की जागीर एवं अन्य सम्पत्ति भी उसे लौटा दी। जोधपुर के भण्डारी ___ इस वंश के लोग अपनी उत्पत्ति साँभर (अजमेर) के चौहान वंश से बताते हैं। इस वंश के राव लखमसी ने नाडोल में पृथक राज्य स्थापित किया था। उसके वंशज प्रह्लाददेव ने 1162 ई. में नाडोल के जैनन्दिर को बहुत-सी भूमि आदि का दान दिया था और पशुबध निषेध की राजाज्ञा जारी की थी। उपर्युक्त राय लखमसी या लाखा के 24 पुत्रों में से एक दूदा था जो भण्डारी कुल का संस्थापक हुआ। यह जैनधर्म में दीक्षित होकर ओसवालों में सम्मिलित हो गया था। राज्यमण्डार का प्रबन्धक होने से भण्डारी (भाण्डागारिक) कहलाता था। इस वंश के लोग रायजोधा (1427-89 ई.) के समय मारवाड़ में आकर बसे । इनके मुखिया मारोजी एवं समरोजी भण्डारी जोधा के वीर सेनानी थे। तभी से भपवारी लोग जोधपुर में राज्यमान्य एवं उञ्चपदों पर नियुक्त होते आये। वे लोग कलम और तलवार दोनों के धनी रहे और भारी भवन निर्माता तथा राजभक्त भी। माना भण्डारी-इस वंश के अमर भण्डारी का पुत्र भाना भण्डारी जैतारण का निवासी था और जोधपुर नरेश गजसिंह का प्रतिष्ठित राज्यकर्मचारी था। उसने 1621 ई. में कापरदा में पार्श्वनाथ का विशाल मन्दिर बनवाया था जिसका शिलारोपण खरतरगच्छी जिनसेनसूरि ने किया था। रघुनाथ भण्डारी-जोधपुर नरेश अजीतसिंह {1680-1725 ई.) के समय में राज्य का दीवान था। शासन प्रबन्ध और युद्ध संचालन दोनों ही क्षेत्र में यह अत्यन्त 182 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ

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