Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 329
________________ अपना राज्य किया ter नामक को अपनी राजधानी बनाया था । तदनन्तर क्रमशः खोह और रामगढ़ की राजधानी बनाया गया और 19वीं शती ई. के लगभग आमेर (अम्बावती) दुर्ग का निर्माण करके उसे राजधानी बनाया गया। सवाई जयसिंह द्वारा 1727 ई. में जयपुर नगर का निर्माण होने तक आमेर ही राजधानी बना रहा, तदुपरान्त उसका स्थान जयपुर ने ले लिया। आमेर जयपुर के ये राजे कछवाहा ( कच्छपघात का अपभ्रंश) राजपूत कहलाये । वंश संस्थापक सोड़देव का कुलधर्म जैन था और उसका राजमन्त्री निर्भयराम ( या अभयराम) नामक छावड़ामोत्री खण्डेलवाल जैन रहा बताया जाता है। इस राज्य में जैनधर्म और जैनोजन खूब फले-फूले । उनकी जनसंख्या भी अच्छी रहती रही है और महाजनों, सेठों एवं व्यपारियों के अतिरिक्त उनमें से अनेक राज्य के मन्त्री, दीवान तथा उच्चपदस्थ कर्मचारी होते आये हैं। इस राज्य के लगभग पचास-साठ जैन राजमन्त्रियों के लो स्पष्ट उल्लेख मिलते हैं। सैंकड़ों श्रेष्ठ जैन विद्वानों, साहित्यकारों और कवियों ने भी इस राज्य के प्रश्रय में उत्तम कोटि का प्रभूत साहित्य रचा है। राज्य के वैराट, आमेर, जयपुर, टोडा (तक्षकपुर), सांगानेर, चाकसू (चम्पावती) या चाटसू, जोबनेर, झुंझगू, मोजमाबाद आदि अनेक नगर जैनधर्म के प्रसिद्ध केन्द्र रहे हैं और राज्य में कई प्रसिद्ध जैनतीर्थ भी हैं। सम्राट् अकबर द्वारा 1567 ई. में चित्तौड़ गढ़ का पतन होने और उस पर मुसलमानों का अधिकार हो जाने पर चित्तौड़ पट्ट के सत्कालीन भट्टारक मण्डलाचार्य वर्मचन्द्र के पट्टधर भट्टारक ललितकीर्ति ने पट्ट को चित्तोड़ से आमेर में स्थानान्तरित कर दिया था। तब से आमेर पट्ट के अनेक विद्वान, धर्मोत्लाही एवं प्रभावक भट्टारकों ने भी धर्म की अच्छी सेवा की। कछवाहों के राज्य के विभिन्न नगरों एवं ग्रामों में अनगिनत जैनमन्दिर बने । अकेले जयपुर नगर में 150 से अधिक जिनमन्दिर एवं कई उत्तम जैन-संस्थाएँ हैं। आमेर के राजा बिहारीमल द्वारा 1562 ई. में अपनी पुत्री का विवाह सम्राट् अकबर के साथ कर देने से इस राज्य का अभूतपूर्व उत्कर्ष आरम्भ हुआ और उसके सर्वतोमुखी उत्कर्ष में राज्य के जैनों का प्रशंसनीय योगदान रहा है। राज्य के विभिन्न छोटे-मोटे ठिकानों (सामन्त घरानों) ने भी जैनधर्म का पोषण किया। रणथम्भौर के कछवा राजा जगन्नाथ के मन्त्री वीसी, आमेरनरेश महाराज मानसिंह ( 1590-1614 ई.) के महामात्य साह नानू और मिर्जा राजा जयसिंह (1621-687 ई.) के प्रधान मन्त्री मोहनदास मनसा का परिचय अन्यत्र दिया जा चुका है। महाराज मानसिंह के राज्यकाल में ही 1591 ई. में साह थानसिंह ने एक तीर्थयात्रा संघ चलाया था और भगवान् महावीर की निर्वाणस्थती पावापुरी में जाकर षोडशकारणयन्त्र की प्रतिष्ठा करायी थी। 1605 ई. में चाटसू (चम्पावती) के जिनमन्दिर में मानस्तम्भ का निर्माण हुआ था, और 1607 ई. में मोजाबाद में जेतासेठ ने सैकड़ों जिन - प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करायी थीं । संघपति मल्लिदास - भाँक्सा गोत्री यात्रा संघ चलानेवाले संघी ऊवर के पुत्र 386 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं, 1958224859

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