Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 289
________________ की बात भूल गया था । मन्त्री पद्मनाभ में पधाकरपुर नाम का एक नगर मी बसाया था। इस नगर में 1498 ई. में उसने पायजिनेन्द्र का एक अन्य भव्य जिनालय बनाकर प्रतिष्ठित किया था और उसके नित्य-पूजा-दानादि के लिए प्रभूत दान देकर उत्तम व्यवस्था की थी और शासन अकिल करा दिया था। चेन्न बोम्मरस-मण्डलेश्वर कुलोत्तुंग चंगाल्वनरेश महादेय-महोपाल का प्रधान मन्त्री केशवनाथ का सुपुत्र, कुलपवित्र एवं जिनधम्मसहायप्रतिपालक बोम्मष्ण मन्त्री का सहोदर वह सम्यक्त्वं चूड़ामणि-बोम्मरस था। 1510 ई. में उसने मंजरायपट्टण के भव्य श्रावकों को गोष्ठी के सहयोग से श्रवणलेलगोल में गोम्मटस्वामी के वेल्लियाड' (उद्यान भवन) का जीर्णोद्धार कराया था। सेनापति मगरस-चंगाका सुप्रसिधा माझी था। सम्राट् कृष्ण देवराय के कई युद्धों में उसने अद्भुत वीरता दिखायी थी। अपने पिता महाप्रभु विजयपाल की ही भाँति वह परम जैन था और साथ ही विद्वान और सुकवि भी था। उसने कई जिनमन्दिर और सरोवर निर्माण कराये घे तवा जयनृप-काव्य, प्रभंजन-चरित, नेमिजिनेशसंगति, सम्यक्त्वकीमुदी (1509 ई.), सूपशास्त्र आदि ग्रन्थों की कन्नड़ी भाषा में रचना करके अपना नाम अमर किया था। चंगाल्वनरेश विक्रमराय के समय में उसने बैदार नाम भयंकर जंगली जाति का दमन करके थेदपुर नगर बसाया था, कई स्थानों की क्रिलाबन्दी की थी, दुर्ग बनवाये थे, कई सरोवर और जिनमन्दिर बनवाये थे। स्वनिमापित चमगुम्ब बसदि में उसने पार्वजिन, पद्मावती और चम्मिगाराय की स्थापना की थी। उसकी जननी देविले भी बड़ी धर्मात्मा थी और पिता विजयमाल कल्लहल्लि का शासक और घंगाल्धनरेश का मन्त्री था तथा पितामह स्वयं एक चंगाल्वनरेश माधवराजेन्द्र था। दण्डाधिप मंगरस उस युग का एक प्रमुख जैन वीर था। चवुडिसेट्टि- श्रवणबेलगोलस्थ विन्ध्यांपरि के अष्ट दिक्पाल मण्डप के एक स्तम्भ पर अंकित 1537 ई. के कई लेखों में गेरुसप्पे निवासी इस चवुद्धिसेट्टि की प्रशंसनीय धार्मिक प्रवृत्ति का दिग्दर्शन प्राप्त होता है। यह उदार धनी श्रावक जिस व्यक्ति को कष्ट वा आर्थिक विपत्ति में देखता उसकी सहायता करता और बदले मैं उससे यह लिखित स्वीकृति (धर्मसाधन) ले लेता कि यह व्यक्ति अमुक धर्म-कार्य करेगा और इस प्रकार वह उक्त उपकृत व्यक्तियों को धर्मसाधन में लगाता था। ये धर्मसाधन (धार्मिक इकरारनामे) इस प्रकार के थे कि गेरुसये के धडिसेट्टि ने मेरी भूमि रहन से मुक्त करा दी है, अतएव मैं अमणिबोम्मथ्य का पुत्र कम्मथ्य सदैव निम्नोक्त दान का पालन करूँगा...एक संघ को आहार, त्यागद-ब्रह्म के सामने के उद्यान की देखरेख और अक्षतपुंज के लिए आवश्यक तन्दुल'-'आपने हमारे कष्ट का परिहार किया है, जिसके उपलक्ष्य में मैं देवप का पुत्र चिमण सदैव एक संघ को आहार-दान दूंगा।' "कवि के पुत्र बोम्मण ने चयुडिसेट्टि को वह धर्मसाधन दिया, 295 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं

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