Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 303
________________ की पुत्री और भगवानदास की बहन ) का विवाह सम्राट अकबर से हुआ, मानसिंह की आयु केवल 12 वर्ष की थी और तभी से वह सम्राट को सच में अत्यन्त प्रियपात्र बन गये थे। अपने बंगाल-बिहार के लगभग 15 वर्ष के शासन काल में उन्होंने अनेक भवन, मन्दिर आदि बनवाये, कई नगर बसाये और राजमहल का नाम अकबरपुर रखकर उसे अपनी प्रान्तीय राजधानी बनाया था। उनके साथ स्वदेश आमेर से अनेक जैनी भी उनके अधिकारीवर्ग के रूप में उस प्रान्त में पहुँचे थे और उन्होंने यहाँ यत्र-तत्र जिन-मन्दिर बनवाये तथा अन्य धर्म-कार्य किये थे। उनमें प्रमुख महाराज के महाभात्य साह नानू थे जो उनके सर्वाधिक विश्वसनीय मन्त्री थे। वह खण्डेलवाल ज्ञातीय, गोधागोत्रीय साहु रूपचन्द्र के पुत्र थे। रूपचन्द्र स्वयं बड़े उदार, दानी, जिनपूजा में अनुरक्त, गुणज्ञ और धर्मात्मा सज्जन थे। उनके सुपुत्र साह नानू तो वैभव में कुबेर, रूप में कामदेव, ऐश्वर्य में इन्द्र प्रताप में सूर्य, सौम्यता में चन्द्र और जिनेन्द्रभक्ति में सर्वोपरि थे। वह मुकुटबद्ध राजाओं के समान प्रसिद्ध थे। जिस प्रकार भरत चक्रवर्ती ने युग की आदि में अष्टापद (कैलास पर्वत) पर जिनमन्दिर बनवाये थे, उसी प्रकार सम्मेदशिखर पर इस धर्मात्मा मन्त्रीवर नानू ने बीस तीर्थकरों के निर्माण स्थलों पर बीस जिनगृह (मन्दिर या टोंक) बनवाये थे और उक्त तीर्थराज की अनेक बार संघ सहित यात्रा की थी। चम्पापुर आदि में भी जिनालय बनवाये, स्वयं अकबरपुर का आदिनाथ जिनालय भी उन्हीं का बनवाया हुआ था। पण्डित जयवन्त - जैसे कई विद्वान् उनके आश्रय में रहते थे। साह नानू की प्रार्थना पर ईडरपड़ के भट्टारकवादिभूषण के सवर्मा पद्मकीर्ति के शिष्य मुनि ज्ञानकीर्ति अकबरपुर पधारे थे और उसी आदिनाथ जिनालय में ठहरे थे। वहीं उन्होंने साह नानू की प्रेरणा पर उन्हीं के नामांकित 'यशोधरचरित्र' नामक संस्कृत काव्य की 1602 ई. में रचना की थी । उसो ग्रन्थ की उसी नगर में 1604 में साह नाथू ने, जो सम्भवतया साह नानू के अनुज या पुत्र थे, एक प्रतिलिपि करा कर भट्टारक चन्द्रकीर्ति के शिष्य भट्टारक शुभचन्द्र को भेंट की थी। स्वदेश आकर 1607 ई. में साह नानू ने मौजमाबाद (आमेर के निकट) में एक विशाल कलापूर्ण जिनमन्दिर बनवाकर महान् प्रतिष्ठोत्सव किया था, जिसमें दूर-दूर के श्रावक सम्मिलित हुए थे और सैकड़ों जिन-विम्ब प्रतिष्ठित हुए थे। सम्भवतया इन्हीं के वंश के साह ठाकुर और उसके पुत्र तेजपाल ने आमेर के नेमिनाथ जिनालय में पुष्पदन्तकृत 'जलहरचरित' की 71 कलापूर्ण चित्रों से सुसज्जित बहुमूल्य प्रति 1540 में बनवायी थी । कर्मचन्द्र बच्छावत- बीकानेर राज्य के संस्थापक राव बीका के परम सहायक एवं प्रधान मन्त्री बच्छराज के समय से ही उसके वंशज बीकानेर नरेशों के दीवान रहते आये थे और उन्होंने अनेक धर्मकार्य भी किये थे। बच्छराज के पश्चात् उसके पुत्र कर्मसिंह और वरसिंह क्रमशः सव लूणकरण और जैतसिंह के मन्त्री रहे। तदनन्तर वरसिंह का पुत्र नगराज जैतसिंह का दीवान रहा। नमराज का पुत्र संग्राम 310 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ

Loading...

Page Navigation
1 ... 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393