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कर दो थी और सुदूर दक्षिण की बिजयों के लिए उसका मार्ग प्रशस्त कर दिया था तथा मलय एवं केरल प्रदेशों पर उसका आंधकार कर दिया था। चामराजनगर की पार्श्वनाथ-बसदि के 117 ई. के शिलालेख में उसकी सामरिक शूरवीरता, पराक्रम
और विजयों का वर्णन है और उसके गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा है। उससे पता चलता है, कि यह गंगराज के समान ही विशाल हृदय था और उसने धर्म एवं मानवता की समान रूप से सेवा की थी। युद्धों के कारण जो व्यापारी-व्यवसायी निधन और विपन्न हो गये थे, जिन किसानों के पास बोने के लिए बीज नहीं था, जो किरात सरदार हार जाने के कारण अपने परिवार से वंचित हुए यत्र-तत्र नौकरी चाकरी ढूँढ़ते फिरते थे, उनकी तथा उन अन्य सबकी जिनकी हानि हुई थी, पुणिसमय्य ने क्षतिपूर्ति की, उन्हें सहायता दी और उनके पालन-पोषण की व्यवस्था की थी। इस प्रकार उसने अनगिनत असहाय, निरसहाय व्यक्तियों की सहायता की। उसकी परोपकार वृत्ति का लाभ जैन और अजैन सबको समान रूप से प्राप्त होता था। उस उदारचेता एवं धर्मानुरागी मन्त्रीश्वर ने अनेक जिनमन्दिर भी बनवाये थे। बिना किसी भयसंचार के उसने प्राचीन गंगनरेशों की भाँति ही गंगवाडि देश की बसदियों को शोभा से सजित किया था। एपणे नाडु के अरकोष्टार स्थान में उसने त्रिकूट-बसदि बनवायी थी, जिसके लिए !|17 ई. में 'मूदान किया था। उसकी पत्नी दण्डनायिकिति जकणब्जे भी बड़ी धर्मात्मा थी । सीता और रुक्मिणी के साथ उसकी तुलना की जाती थी। उसी वर्ष उसने एक पाषाणनिर्मित सुन्दर जिनालय बनवाया था, जिसके उत्तर की ओर स्वयं पुणिस ने मूलस्थान-बसाद नामक भनोरम जिनालय बनवाया था। वह बसदि राजधानी के विषगुवधन-पोयसल जिनालय से सम्बद्ध थी। पुणिस की विमाता चौण्डले का पुत्र बिट्टिग था। महाप्रधान दण्डनायक पुणिसमय्य के गुरु अजितसेन-पण्डितदेव थे जो स्वयं द्रमिलसंघी अमन्तवीर्य के शिष्य थे।
मारियाने और भरत-विष्णवर्धन होयसल के थे दोनों प्रसिद्ध चीर दण्डनायक एवं मन्त्री परस्पर सगे भाई थे। उनके पूर्वजों का सम्बन्ध होयसल नरेशों के साथ पुराना चला आता था। राजा विनयादित्य प्रथम होयसल का एक वीर सेनानी मरियाने दण्डनायक (प्रथम) था, जो जाति में 'भारद्वाजगोत्री ब्राह्मण और धर्म से जैन था। राजा और उसकी रानी केलेयम्बरलि का वह कृपापात्र था। सनी ने राजधानी शशकपुर में ही स्वयं राजा की लपस्थिति में उक्त मरियाने प्रथम का विवाह देकदे-दण्डनायकित्ति के साथ 1045-46 ई. में करा दिया था और भेंट में उसे आसन्दिना का सिन्दगेरी स्थान प्रदान किया था। देकदे से उसके भाषण और डाकरस नाम के दो पुत्र उत्पन्न हुए। मरियाने प्रथम की दूसरी पत्नी चामवे से उत्पन्न तीनों पुत्रियों-पमान, चामन और बोपदेवी का विवाह बल्लाल प्रथम ने स्वयं 1103 ई. में एक ही मण्डप में सुयोग्य वरों के साथ किया था और उस अवसर पर दूध-पिलायी के रूप में सिन्दगेरी का स्वामित्व मारियाने प्रथम को पुनः प्रदान कर दिया
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