Book Title: Pramana Mimansa Tika Tippan
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
सम्पादन विषयक वक्तव्य पाठान्तर और सूत्रों की संख्या के भेदसूचक उल्लेख के उपरान्त नीचे तीन प्रकार के टिप्पण हैं। एक तो डेलाप्रति में प्राप्त टिप्पण है। दूसरा मुद्रित पूनावाली नकल से लिया गया टिप्पण जो मु-टि० संकेत से निर्दिष्ट है। और तोसरा प्रकार संपादक की ओर से किये गये टिप्पण का है। डे० टिप्पण संक्षिप्त और विरल स्थलों पर होते हुए भी कहीं कहीं बड़े मार्के का और उपयोगी जान पड़ा। इसलिए वह पूरा का पूरा ले लिया गया है। उसकी शुद्धि करने का प्रयत्न किया गया है। फिर भी कुछ स्थलों में वह अनेक कारणों से संदिग्ध ही रह गया है।
दूसरी विशेषता परिशिष्टों की है। सात परिशिष्टों में से पहला परिशिष्ट सिर्फ मूल सूत्रों के पाठ का है । जो विद्यार्थी व संशोधकों के लिए विशेष उपयोगी है । दूसरे परिशिष्ट में मूल सूत्रों की.उन जैन-जैनेतर ग्रन्थों से तुलना की गई है, जो ग्रन्थ हेमचन्द्र की रचना के या तो आधार हैं, या उसके विशेष निकट और उसके साथ ध्यान देने योग्य समानता वाले हैं। पूर्ववर्ती साहित्यिक संपत्ति, किसी भी ग्रन्थकार को विरासत में, शब्द या अर्थरूप से जाने अनजाने कैसे मिलती है, इसका कुछ खयाल इस परिशिष्ट से आ सकता है। तीसरे परिशिष्ट में प्रन्थ गत विशेष नाम और चौथे मैं पारिभाषिक शब्द दिये गये हैं, जो ऐतिहासिकों और कोषकारों के लिए खास उपयोग की वस्तु है। पाँचवें परिशिष्ट में ग्रन्थ में आये हुए सभी गद्य पद्य अवतरण उनके प्राप्त स्थानों के साथ दिये हैं जो विद्यार्थियों और संशोधकों के लिए उपयोगी हैं। छ परिशिष्ट संक्षिप्त होने पर भी बड़ा ही है। उसमें भाषाटिप्पणगत सभी महत्त्व के शब्दों का संग्रह तथा उन टिप्पणों में प्रतिपादित विषयों का संक्षिप्त पर सारगर्भित वर्णन है जो गवेषक विद्वानों के वास्ते बहुत ही कार्यसाधक है। सातवें परिशिष्ट में भाषा-टिप्पणों में प्रयुक्त ग्रन्थ, प्रन्थकार आदि विशेष नामों की सूची है जो सभी के लिए उपयोगी है। इस तरह ये सातों परिशिष्ट विविध दृष्टि वाले अभ्यासियों के नानाविध उपयोग में आने योग्य हैं।
तीसरी विशेषता भाषा-टिप्पणों की है। भारतीय भाषा में और खास कर राष्ट्रीय भाषा में दार्शनिक मुद्दों पर ऐसे टिप्पण लिखने का शायद यह प्रथम ही प्रयास है। दर्शन शास्त्र के व न्याय शास्त्र के कुछ, परंतु खास खास मुद्दों को लेकर उन पर ऐतिहासिक तथा तुलनात्मक दृष्टि से कुछ प्रकाश डालने का, इन टिप्पणों के द्वारा प्रयत्न किया गया है । यद्यपि इन टिप्पणों में स्वीकृत इतिहास तथा तुलना की दृष्टि वैदिक, बौद्ध और जैन इन भारतीय पर. म्पराओं तक ही सीमित है। फिर भी इन तीनों परम्पराओं की अवान्तर सभी शाखाओं को स्पर्श करने का यथासंभव प्रयत्न किया गया है। जिन शास्त्रीय प्रमाणों व आधारों का अवलंबन लेकर ये टिप्पण लिखे गये हैं, वे सब प्रमाण व आधार टिप्पणों में सर्वत्र अक्षरशः परिपूर्ण न देकर अनेक स्थलों में उनका स्थान सूचित किया है और कहीं कहीं महत्त्वपूर्ण संक्षिप्त अवतरण भी दे दिये हैं जिससे अनावश्यक विस्तार न हो, फिर भी मूल स्थानों का पता लग सके। - चौथी विशेषता प्रमाणमीमांसा के सूत्र तथा उसकी वृत्ति की तुलना करने के संबन्ध में है। इस तुलना में ऐसे अनेक जैन, बौद्ध और वैदिक ग्रन्थों का उपयोग किया है, जो या तो प्रमाणमीमांसा के साथ शब्दशः मिलते हैं या अर्थतः; अथवा जो ग्रन्थ साक्षात् या परम्परया प्रमाणमीमांसा की रचना के आधारभूत बने हुए जान पड़ते हैं। इस तुलना में निर्दिष्ट ग्रन्थों की सामान्य सूची को देखने मात्र से ही यह अंदाज लगाया जा सकता है कि हेमचन्द्र ने प्रमाणमीमांसा की रचना में कितने विशाल साहित्य का अवलोकन या उपयोग किया होगा, और इससे हेमचन्द्र के उस ग्रन्थप्रणयनकौशल का भी पता चल जाता है जिसके द्वारा उन्होंने अनेक ग्रन्थों के विविधविषयक पाठों तथा विचारों का न केवल सुसंगत संकलन ही किया है अपितु उस संकलन में अपना विद्यासिद्ध व्यक्तित्व भी प्रकट किया है।
पाँचवीं विशेषता प्रस्तावना की है जिसके अन्य परिचय में, भारतीय दर्शनों के विचार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org