Book Title: Prakrit Sahitya ki Roop Rekha Author(s): Tara Daga Publisher: Prakrit Bharti AcademyPage 31
________________ द्वितीय वाचना - आगम संकलन का दूसरा प्रयास ईसा पूर्व प्रथम-द्वितीय शताब्दी अर्थात वीर निर्वाण के 300-330 वर्ष के मध्य सम्राट खारवेल के समय में हुआ। सम्राट खारवेल जैन धर्म के परम उपासक थे। उनके हाथीगुम्फा अभिलेख से स्पष्ट है कि उन्होंने उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर जैन मुनियों का एक संघ बुलाया और मौर्यकाल में जो अंग विस्मृत हो गये थे, उनका पुनः उद्धार करवाया। 'हिमवंत थेरावली' नामक प्राकृत-संस्कृत मिश्रित पट्टावली में भी स्पष्ट रूप से इस बात का उल्लेख है कि सम्राट खारवेल ने प्रवचन का उद्धार करवाया था। तृतीय वाचना - आगमों को संकलित करने हेतु तीसरी वाचना वीर-निर्वाण के 827-840 वर्षोपरान्त अर्थात् ईसा की तीसरी शताब्दी में आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में मथुरा में हुई। यह सम्मेलन मथुरा में होने के कारण माथुरीवाचना के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस समय भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा, जिसके कारण श्रुत तथा श्रुतवेत्ता दोनों ही नष्ट हो गये। दुर्भिक्ष की समाप्ति पर युग-प्रधान आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में आगम-वेत्ता मुनि इकट्ठे हुए, जिन्हें जैसा स्मरण था, उस आधार पर श्रुत का संकलन किया गया। उस समय आचार्य स्कन्दिल ही एक मात्र अनुयोगधर थे। उन्होंने उपस्थित श्रमणों को अनुयोग की वाचना दी। इस दृष्टि से सम्पूर्ण अनुयोग स्कन्दिल सम्बन्धी माना गया, और यह वाचना स्कन्दिल वाचना के नाम से जानी गई। चतुर्थ वाचना - माथुरीवाचना के समय के आस-पास ही वल्लभी में नागार्जुन की अध्यक्षता में दक्षिण-पश्चिम में विचरण करने वाले श्रमणों की एक वाचना हुई, जिसका उद्देश्य विस्मृत श्रुत को व्यवस्थित करना था। उपस्थित मुनियों की स्मृति के आधार पर जितना उपलब्ध हो सका, वह सारा वाङ्मय सुव्यवस्थित किया गया। नागार्जुनसूरि ने समागत साधुओं को वाचना दी, अतः यह नागार्जुनीय वाचना के नाम से प्रसिद्ध हुई। चूर्णियों में नागार्जुन नाम से पाठान्तर मिलते हैं। पण्णवणा जैसे अंगबाह्य सूत्रों में भी इनका निर्देश है। पंचम वाचना - वीर निर्वाण के 980 वर्षों बाद जब विशाल ज्ञान राशि को स्मृत रखना मुश्किल हो गया था, श्रुत साहित्य का अधिकांश भाग नष्ट होPage Navigation
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