Book Title: Prakrit Sahitya ki Roop Rekha
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 167
________________ किया। इस ग्रन्थ में देशी शब्दों के संस्कृत रूप तो दिये ही हैं, साथ ही ऐसे शब्द भी मिलते हैं, जो संस्कृत से गढ़े गये हैं। यथा -- मिठाई > मृष्टाटिका । आधुनिक कोश-ग्रन्थ इन प्राचीन कोश-ग्रन्थों के अतिरिक्त कुछ आधुनिक कोश-ग्रन्थों की भी रचनाएँ हुई हैं, जिनके अध्ययन से प्राकृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। श्री अभिधानराजेन्द्रकोश आधुनिक प्राकृत कोशों में आचार्य विजयराजेन्द्रसूरि द्वारा विरचित अभिधानराजेन्द्रकोश अत्यंत उपयोगी कोश है। आचार्य ने पन्द्रह वर्षों के लगातार परिश्रम के पश्चात् वि. सं. 1960 में साढ़े चार लाख श्लोक प्रमाण इस विशालकाय कोश की रचना की। यह कोश-ग्रन्थ सात भागों में है, जिनमें अकारादि क्रम में 60,000 शब्दों का मूल के साथ संस्कृत में अनुवाद, व्युत्पत्ति, लिंग एवं जैनागमों के अनुसार उनके अर्थ की प्रस्तुति की गई है। कुछ शब्दों के व्याख्या क्रम में संदर्भित कथाओं का भी निरूपण किया गया है। इससे यह कोश-ग्रन्थ रोचक व सरस बन गया है। जैन आगम-साहित्य में आए पारिभाषिक शब्दों का अध्ययन करने के लिए यह कोश अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अभिधान राजेन्द्र कोश का संक्षिप्त रूप शब्दांबुधि में किया है, किन्तु यह रचना अभी अप्रकाशित है। अर्धमागधी कोश यह कोश-ग्रन्थ शतावधानी मुनि रत्नचन्द्रजी द्वारा ई. सन् 1923-1938 में पाँच भागों में रचा गया है। यह महत्त्वपूर्ण कोश संस्कृत, गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी इन चार भाषाओं में संकलित है। इसमें यथास्थान शब्दों के लिंग, वचन आदि का भी निर्देश किया गया है। शब्दों के साथ मूल संक्षिप्त उद्धरणों का भी समावेश है। आगम-साहित्य के साथ-साथ विशेषावश्यकभाष्य आदि ग्रन्थों के शब्दों का भी इसमें संकलन है।

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