Book Title: Prakrit Sahitya ki Roop Rekha
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 166
________________ अनुसार इस कोश-ग्रन्थ में उन देशी शब्दों का संकलन किया गया है, जो शब्द न तो व्याकरण से व्युत्पन्न हैं, न संस्कृत कोशों में निबद्ध हैं, तथा लक्षणा शक्ति के द्वारा भी जिनका अर्थ प्रसिद्ध नहीं है। साथ ही आचार्य हेमचन्द्र ने यह भी स्पष्ट किया है कि देश-विदेश में प्रचलित ये देशी शब्द अनंत हैं, अतएव उन सभी शब्दों का संग्रह नहीं किया जा सकता है। यहाँ उन्हीं शब्दों का संकलन किया गया है, जो अनादिकाल से प्राकृत साहित्य की भाषा में और उसकी बोलियों में प्रचलित रहे हैं। इस कोश में कुछ शब्द द्रविड, कौल, मुण्डा आदि भाषाओं के भी प्राप्त होते हैं। इस दृष्टि से यह शब्द-कोश प्राचीन एवं आधुनिक भारतीय भाषाओं के ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक अध्ययन के लिए बहुत उपयोगी है। इस कोश-ग्रन्थ में जिन देशी शब्दों का संकलन किया गया है, वे अन्यत्र दुर्लभ हैं। इन संकलित शब्दों के अनुशीलन के आधार पर उस काल के रहन-सहन, रीति-रिवाजों आदि पर भी यथेष्ट प्रकाश पड़ता है। आचार्य हेमचन्द्र ने कोशगत देशी शब्दों के स्पष्टीकरण हेतु इस ग्रन्थ में उदाहरण स्वरूप जो गाथाएँ प्रस्तुत की हैं, उनका साहित्यिक सौंदर्य अद्भुत व बेजोड़ है। उनमें शृंगार रस का सुंदर निरूपण हुआ है। अन्य किसी भाषा के कोश में ऐसे सरस पद्य उदाहरण के रूप में देखने को नहीं मिलते हैं। वस्तुतः ‘देशीनाममाला' समस्त भारतीय वाङ्मय में दुर्लभ शब्दों का संकलन करने वाला अनूठा एवं अपूर्व ग्रन्थ है। उक्तिव्यक्तिप्रकरण प्राचीन कोश-ग्रन्थों की परम्परा में प. दामोदर शास्त्री ने 12वीं शताब्दी में उक्तिव्यक्तिप्रकरण की रचना की, जिसका दूसरा नाम प्रयोगप्रकाश है। इस कोश-ग्रन्थ में इस बात को अत्यंत सरल ढंग से समझाया गया है कि किस प्रकार लोक भाषा में प्रचलित.देशी शब्द संस्कारित होकर संस्कृत रूप धारण करते हैं। उक्तिरत्नाकर देश्य शब्दों के ज्ञापन के लिए 17वीं शताब्दी में जैन साधु सुन्दरगणि ने उक्तिरत्नाकर की रचना कर उक्तिमूलक शब्दों का संग्रह

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