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पाइय-सद्द-महण्णवो
कलकत्ता के पंडित हरगोविन्ददास त्रिकमचंद सेठ ने 14 वर्षों के कठोर परिश्रम के उपरांत इस कोश-ग्रन्थ का सम्पादन किया है। इस कोश-ग्रन्थ में आर्ष प्राकृत से लेकर अपभ्रंश युग तक की प्राकृत भाषाओं के विविध विषयों से सम्बन्धित जैन एवं जैनेतर प्राचीन ग्रन्थों की अति विशाल शब्द राशि एवं उनके संभावित अर्थों का विवेचन किया गया है। प्रत्येक शब्द के साथ किसी न किसी ग्रन्थ का प्रमाण अवश्य दिया गया है। प्राकृत भाषा के विद्यार्थियों के लिए यह ग्रन्थ अत्यंत उपयोगी है। प्राकृत-हिन्दी-कोश
पाइय-सद्द-महण्णवो के विषयों को संक्षिप्त कर डॉ. के.आर. चन्द्रा ने ई. सन् 1987 में प्राकृत-हिन्दी-कोश का सम्पादन किया है। अकारादि क्रम में शब्दों की संयोजना करने वाले इस ग्रन्थ में प्राकृत शब्दों के लिंग, संस्कृत रूप व हिन्दी अर्थ दिये गये हैं। लघुकाय होने के कारण यह कोश-ग्रन्थ प्राकृत के प्रारम्भिक विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
इनके अतिरिक्त आधुनिक कोश-ग्रन्थों में श्री जैनेन्द्र वर्णी द्वारा रचित जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश प्रमुख है, जिसमें जैन दर्शन के पारिभाषिक शब्दों में प्राकृत के अनेक शब्दों के अर्थ उद्धरण सहित मिल जाते हैं। समणी कुसुम प्रज्ञा द्वारा सम्पादित एकार्थक कोश, युवाचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा सम्पादित देशी शब्द कोश एवं निरुक्त कोश तथा डॉ. उदयचन्द जैन द्वारा सम्पादित कुन्दकुन्द कोश आदि प्राकृत के महत्त्वपूर्ण शब्द कोश हैं, जिनके अध्ययन से प्राकृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। वर्तमान समय में प्रो. ए. एम. घाटगे ने भण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना से ए कम्प्रेहेंसिव एण्ड क्रिटीकल डिक्शनरी ऑफ द प्राकृत लेंग्युएजेज नाम से एक विशाल कोश का निर्माण प्रारम्भ किया है। इसके दो भाग छप चुके हैं। यह प्राकृत अंग्रेजी कोश है, जिसमें शब्दों के उद्धरण भी दिये गये हैं।