Book Title: Prakrit Sahitya ki Roop Rekha
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

Previous | Next

Page 145
________________ । प्राकृत-व्याकरण, छंद, अलंकार एवं कोश-ग्रन्थ प्राकृत भाषा में धर्म-दर्शन के ग्रन्थ, शिलालेख, कथा, काव्य, चरित आदि अनेक विधाओं में साहित्य लिखा गया, जो जैन धर्म व दर्शन के प्रमुख सिद्धान्तों की समुचित व्याख्या तो प्रस्तुत करता ही है, साथ ही तत्कालीन समाज व संस्कृति की गौरवमय झाँकी भी प्रस्तुत करता है। काव्य-तत्त्वों की दृष्टि से भी यह साहित्य अत्यन्त समृद्ध रहा है। इस विपुल साहित्य के कारण ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी तक प्राकृत अपने जनभाषा के स्वरूप से दूर हटकर साहित्यिक स्वरूप को प्राप्त कर चुकी थी। अतः विद्वानों द्वारा इस विशाल वाङ्मय की विधिवत् व्यवस्था के लिए उपलब्ध साहित्य के आधार पर व्याकरण के नियम निश्चित करने के प्रयत्न किये गये। व्याकरण के साथ-साथ छन्द, अलंकार एवं कोश-ग्रन्थ भी तैयार किये गए। इन रचनाओं में काव्य-तत्त्वों की मात्रा तो अल्प है, किन्तु सभ्यता एवं संस्कृति की एक सुव्यवस्थित परम्परा इनमें निहित है। व्याकरण-ग्रन्थ किसी भी भाषा को सीखने के लिए व्याकरण का ज्ञान नितांत्त आवश्यक है। व्याकरण के द्वारा शब्दों की व्युत्पत्ति को स्पष्ट किया जाता है। जब कोई भाषा साहित्यिक भाषा का दर्जा प्राप्त कर लेती है, तब उसको एक विधिवत रूप प्रदान करने के लिए व्याकरण ग्रन्थ लिखे जाते हैं। प्राकृत भाषा प्रारंभ में जनभाषा के रूप में विकसित हुई थी, किन्तु ई. सन् की द्वितीय-तृतीय शताब्दी के आस-पास इसमें विपुल साहित्य लिखा जाने लगा। छठी शताब्दी तक तो यह पूर्ण रूप से साहित्य की भाषा बन गई। अतः विद्वानों द्वारा इसे परिनिष्ठित रूप प्रदान करने के लिए इसके विभिन्न व्याकरण-ग्रन्थ भी लिखे गये, जिनमें प्राकृत भाषा के विभिन्न पक्षों पर विधिवत् प्रकाश डाला गया है। प्राकृत भाषा के जो भी प्राचीन व्याकरण

Loading...

Page Navigation
1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173