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ने हिन्दी भाषा के माध्यम से शौरसेनी प्राकृत के अध्ययन हेतु शौरसेनी प्राकृत भाषा एवं व्याकरण नामक एक शोध ग्रन्थ भी लिखा है। डॉ. सोगाणी के प्राकृत-अपभ्रंश व्याकरण
। प्राकृत भाषा को हिन्दी आदि मातृभाषाओं के माध्यम से सीखने-सीखाने के लिए कृत-संकल्प डॉ. कमलचन्द सोगाणी ने वर्तमान समय में अनेक प्राकृत व अपभ्रंश व्याकरण के ग्रन्थों की रचना की है। उनकी कृति प्राकृत रचना सौरभ आधुनिक प्राकृत व्याकरण-ग्रन्थों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। हिन्दी माध्यम से इस ग्रन्थ में महाराष्ट्री, शौरसेनी व अर्धमागधी इन तीनों ही प्राकृतों को विभिन्न विकल्पों सहित एक साथ सीखाने का प्रयत्न किया गया है। विभिन्न पाठों को इस प्रकार क्रम से रखा गया है कि जिज्ञासु पाठक बिना रटे स्वतः ही प्राकृत भाषा के विभिन्न नियमों से अवगत होता चला जाता है। डॉ. सोगाणी की प्राकत रचना सौरभ की सम्पूर्णता उनकी अगली कृति प्राकृत अभ्यास सौरभ में है। प्राकृत अभ्यास सौरभ की नवीन शैली व इसका आधुनिक प्रस्तुतीकरण में डूबा पाठक स्वतः अभ्यास करते-करते प्राकृत सीख जाता है। प्राकृत भाषा को सीखने के लिए ये पुस्तकें अत्यंत उपयोगी हैं। आगे इसी क्रम में प्रौढ़ प्राकृत रचना सौरभ (भाग 1) की रचना कर लेखक ने संस्कृत भाषा में रचित प्राकृत व्याकरण के संज्ञा व सर्वनाम सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही संख्यावाची शब्दों व उनके विभिन्न प्रकारों को समझाने का प्रयास भी किया है। सूत्रों का विश्लेषण एक ऐसी शैली से किया गया है, जिससे अध्ययनार्थी संस्कृत के अति सामान्य ज्ञान से ही सूत्रों को समझ सकते हैं। सूत्रों को पाँच सोपानों में समझाया गया है - 1. सूत्रों में प्रयुक्त पदों का सन्धि विच्छेद किया गया है, 2. सूत्रों में प्रयुक्त पदों की विभक्तियाँ लिखी गई हैं, 3. सूत्रों का शब्दार्थ लिखा गया है, 4. सूत्रों का पूरा अर्थ (प्रसंगानुसार) लिखा गया है तथा 5. सूत्रों के प्रयोग लिखे गये हैं। परिशिष्ट में सूत्रों में प्रयुक्त सन्धि-नियम एवं सूत्रों का व्याकरणिक विश्लेषण भी दिया गया है, जिससे विद्यार्थी सुगमता से समझ सकें।
प्राकृत व्याकरण की तरह अपभ्रंश भाषा के व्याकरण को सरल एवं सुबोध शैली में समझाने हेतु अपभ्रंश रचना सौरभ, अपभ्रंश अभ्यास